एक अशी वाट शोधतोय मला तुझ्याकडे नेणारी... पावसाची एक सर यावी मागच..सारं...सारं पुसणारी
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मुक्या भावना अधीर झाल्यात शब्द रुपात यायला... त्यांनाही कुठे आवडतय रोज आसवात चिंब न्हायला.........
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Shyamli
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| Wednesday, December 27, 2006 - 2:30 pm: |
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छे अस सारं काही कधी पुसता का येत वाहुन गेलेल पाणीदेखील आपल्या खुणा सोडतं श्यामली!!!
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तुझ्या येन्याची नकळत एक चाहुल लागलीये.. अर्धमेल्या माझ्या मनाला बघ नवी पालवी फुटतिये
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R_joshi
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| Thursday, December 28, 2006 - 2:46 am: |
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तुझा राग तुझा लोभ इतका आपलासा झालाय नाहि म्हणता म्हणता जीव तुझ्यातच गुंतलाय प्रिति तुषार प्रयत्न सुरेखच आहे झुळुकहि बहरलिय आज
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R_joshi
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| Thursday, December 28, 2006 - 2:54 am: |
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सरीवर सरी कोसळतात आभाळ अगदि रित होत नव्या जोमाने बरसण्यासाठी ते परत एकदा सज्ज होत प्रिति
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R_joshi
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| Thursday, December 28, 2006 - 2:56 am: |
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आज लाभला निवारा मज तुज सोबतिचा ध्यास का घेऊ मी एकांत समयिचा प्रिति
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Deep_tush
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| Thursday, December 28, 2006 - 3:08 am: |
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आभाळ जात रित होउन आठवन्णीच काहुर माजवून........... मनालही जात काम लावून भुतकाळात पाठवून........ धन्यवाद, प्रिती तुशार......
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Poojas
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| Thursday, December 28, 2006 - 3:51 am: |
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आभाळाने रितं व्हावं मन हलकं करण्यासाठी.. पुन्हा एकदा सज्ज व्हावं., नवं गाणं स्मरण्यासाठी..!!
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R_joshi
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| Thursday, December 28, 2006 - 3:56 am: |
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आभाळाच रितेपण धरणिला सुखावणार असत एकटेपणाच्या भुतकाळाला न स्मरणच चांगल असत प्रिति
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R_joshi
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| Thursday, December 28, 2006 - 3:59 am: |
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आसवात चिंब भिजल्यावर भावना ही नवख्या होतात शब्दांच लेण लेवुन त्या काव्यसमयि स्मरतात प्रिति
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" बालपणापासूनचे आभाळ आताही जसच्या तस आहे तेव्हा चादण्याच आता... तिच्या डोळ्यातल्या नक्षत्राच पिस आहे ! "
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Deep_tush
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| Thursday, December 28, 2006 - 4:31 am: |
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अश्रुंची संगती काहितरी वेगळीच असते...... दु:ख़ात तर असतातच पण सुख़ातही त्यांची सोबती असते.... तुषार.......
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Poojas
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| Thursday, December 28, 2006 - 4:34 am: |
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नक्षत्रं आसवांना म्हटले तुझ्या कधी मी.. अन..स्पंदनांत माझ्या जपले तुला कधी मी.. आभाळ सावलीचे होऊन मी निघालो.. अन.. ओंजळीत अश्रू टिपले तुझे कधी मी..!!
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पुजा तुझ्यासाठी.. तु समोर असतेस, तेव्हा जवळच असतेस तु दुर असलीस तरी मनातच राहतेस.. अशी सदैव कशाला पळतेस मनात माझ्या... की विचारांनी मलाच दमवतेस !!
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R_joshi
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| Thursday, December 28, 2006 - 6:24 am: |
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पूजा, गणेश, तुषार, योगी फारच छान मी नसले जरी जवळी तुझ्या तरी मनी सदोदित राहतसे अंतर नसले मैलांचे जरी तरी दमछाक तुझी होत असे प्रिति
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R_joshi
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| Thursday, December 28, 2006 - 6:28 am: |
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नक्षत्रांनी भरलेल्या आभाळाची गंमत काहि वेगळीच चांदणे असुन सभोवती काळोखच वरचढ ठरी प्रिति
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R_joshi
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| Thursday, December 28, 2006 - 6:33 am: |
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ऐलतीर पैलतीर एकाच नदिचे काठ समांतर जीवन जगताना मिलनाची बघतात वाट प्रिति
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आज तर एकएकाच्या झुळुका बहरतच चालल्या आहेत. योगी गुड गोईंग...
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R_joshi
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| Thursday, December 28, 2006 - 6:38 am: |
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आसवांना नक्षत्र म्हंटलस आता आकाशाकडे का पाहु नेत्रांच्या नक्षत्रवेलींमध्ये पुरता गेलोय गुरफटुन प्रिति
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