Mrinmayee
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| Sunday, December 24, 2006 - 10:58 am: |
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सुपरमॉम, फारच सुंदर लिहिलंयस! सहज, ओघवतं आणि सगळंकाही डोळ्यांसमोर घडतंय असं वाटायला लावणारं!!! सुनेचा अंजीरी शालु तर मी पक्का करून टाकलाय!! (पुढे ती फाडून त्याचे २०-२५ miniskirts बनवे ना का!! )
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Psg
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| Monday, December 25, 2006 - 1:17 am: |
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सुपरमॉम, झकास.. एकदम मस्त लिहिलस, आणि पटापट पूर्णही केलस.. छान वाटलं वाचताना..
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Kusumita
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| Monday, December 25, 2006 - 2:23 am: |
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खरच मस्त वाटले वाचायला!
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Princess
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| Monday, December 25, 2006 - 3:41 am: |
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सुपरमॉम, खुप छान लिहिलय ग. पटपट लिहुन पुर्ण केलस तेही छान केलस. आमच्या (वाचकांच्या) मनावरची पकड थोडीसुद्धा सैल होउ दिली नाहीस. लिहित राहा ग. खुपच आवडले
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Jhuluuk
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| Tuesday, December 26, 2006 - 3:32 am: |
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Supermom खुपच छान जमलेय. आवडलं.
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सुपरमॉम खुप छान... अगदी प्रत्येक प्रसंग डोळ्यासमोर उभा राहीला...
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R_joshi
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| Wednesday, December 27, 2006 - 5:13 am: |
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सुपरमॉम कथा खुप खुप छान आहे. अगदि मनाला साद घालते तुमची कथा. नवी कथाही लवकर लिहा.
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Ramani
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| Wednesday, December 27, 2006 - 5:26 am: |
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सुपरमॉम, लग्नाच्या वयात आलेल्या मुलांच्या पालकांना विचारखाद्य म्हणुन साथ-साथ सारख्या संस्थांनी वाचायाला द्यावी अशी कथा. हलकी-फुलकी आणि स्पर्शुन जणारी.
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Dineshvs
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| Wednesday, December 27, 2006 - 11:57 am: |
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मुद्दाम सवड काढुन निवांत वाचली. छान जमलीय कथा.
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Prajaktad
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| Wednesday, December 27, 2006 - 4:18 pm: |
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suparb! मस्त जमलिय .. कथा वाटतच नाही , अगदी आसपास घडतय अस वाटत वाचताना.
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Ashwini
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| Saturday, December 30, 2006 - 5:25 pm: |
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मस्त ग supermom . नात्यांचे सगळे रंग सुरेख पकडलेत.
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