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Sarang23
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| Monday, December 04, 2006 - 8:09 am: |
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वा! वैभवा, प्रत्येक शेर खास आहे...! शेवटचे तीन अप्रतीम!!
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वा वैभव!! अप्रतिम!! सगळेच शेर!
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Zaad
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| Monday, December 04, 2006 - 9:17 am: |
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वैभव, पुन्हा एकदा, केवळ अप्रतिम!!!
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Ashwini
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| Monday, December 04, 2006 - 10:00 am: |
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वैभव, ' मलाही ' मस्तच रे!
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Asmaani
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| Monday, December 04, 2006 - 10:32 am: |
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सारंग आणि वैभव, एक से बढकर एक चालू आहे अगदी! तुमच्या गझला आणि कविता म्हणजे मेजवानी आहे. धन्यवाद तुम्हाला इतक्या सुंदर गझला इथे लिहिल्याबद्दल!
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वैभवा ,'मलाही' सुरेखच रे
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Paragkan
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| Monday, December 04, 2006 - 3:02 pm: |
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wah re Vaibhav !!
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आपल्या दोघांमधे ही गॅप का? आपल्या दोघांमधे ही गॅप का? ऐकतो मी लावण्या, तू रॅप का? राहतो राणी तुझ्या हृदयात मी शोधते आहेस गूगल-मॅप का! नियम तुमच्या शर्यतीचे का असे? रोज धावावा नव्याने लॅप का? लाल पाणी वाहते धमन्यांतुनी मग निळी, भगवी नि हिरवी कॅप का? रक्त, किंकाळ्या अताशा रोजच्या जाणिवांचे बंद झाले फ्लॅप का? लोपल्या सार्या तुझ्या कविता कुठे? बंद पडला अक्षरांचा टॅप का? दूर जाताना असा का चेहरा? सोडताना भावनांचे ट्रॅप का? भेटते तेंव्हा मुकी ती राहाते टाकते मग ऑर्कुटावर स्क्रॅप का?
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प्रसाद ... अलग मूड ?
दूर जाताना असा का चेहरा? सोडताना भावनांचे ट्रॅप का? खूप खास आलाय ... मस्त !!! आमच्यातर्फे फु ना. फु. पा. :- डिक्शनरी धास्तावली ऑक्स्फ़र्डची शब्द माझे जाहले किडनॅप का ?
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वैभव धन्स... किडनॅप खल्लास!!
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Sarang23
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| Friday, December 08, 2006 - 4:03 am: |
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वा! प्रसाद, खासच रे... लाल पाणी वाहते धमन्यांतुनी मग निळी, भगवी नि हिरवी कॅप का? वा! वा!! आमच्या तर्फेही एक पाकळी... प्रेम आहे एवढे मी बोललो कारणावाचून पडला स्लॅप का?
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Himscool
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| Friday, December 08, 2006 - 4:05 am: |
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वाह वा, वाह वा... प्रसाद क्या बात है... लाल पाणी वाहते धमन्यांतुनी मग निळी, भगवी नि हिरवी कॅप का? वैभव किडनॅप सहीच
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Devdattag
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| Friday, December 08, 2006 - 5:19 am: |
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गुड वन.. प्रसाद.. वैभव आणि सारंग तुमच्या पाकळ्याही चपखल..
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सारंग, स्लॅप मस्तच रे!
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Chinnu
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| Friday, December 08, 2006 - 7:26 am: |
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प्रसाद मस्त रे. वैभवा, सारंग फ़ा. वि. बु. तु.!! हे आमचं कैच्या कै कुणाचे घोरणे पण होते कविता ही काय तुझी नॅप का?!
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Ashwini
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| Friday, December 08, 2006 - 10:28 am: |
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प्रसाद, वेगळीच.. मस्त. वैभव, किडनॅप एकदम खास.
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>>>> दूर जाताना असा का चेहरा? >>>> सोडताना भावनांचे ट्रॅप का? प्रसाद, मस्त. वैभव,
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वा!! प्रसाद.. मस्त राहतो राणी तुझ्या हृदयात मी शोधते आहेस गूगल-मॅप का! दूर जाताना असा का चेहरा? सोडताना भावनांचे ट्रॅप का?.. दोन वेगवेगळे moods छानच.. वैभव,सारंग,चिनु तुमच्या पाकळ्याही मस्त
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Sarang23
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| Monday, December 11, 2006 - 6:55 am: |
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हा जीव असा जळलेला हा जीव असा जळलेला! पण कुणास ना कळलेला! मी गाणे म्हटले आणिक; तो फकीर हळहळलेला हे कसले बाण म्हणावे? भाताही डळमळलेला! शब्दांशी खेळत होता, अर्थाने तळमळलेला! काजव्यास मूर्ख म्हणाला उल्केगत कोसळलेला वेडाच असावा तो जो विरहाने उन्मळलेला सांगे तत्त्वांच्या गोष्टी; जो स्वतःच ढासळलेला जगण्याचा अवघड रस्ता! कळता कळता वळलेला!! सारंग
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शब्दांशी खेळत होता, अर्थाने तळमळलेला! काजव्यास मूर्ख म्हणाला उल्केगत कोसळलेला वा सारंग! मक्तापण छान आहे.
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