Daad
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| Thursday, November 09, 2006 - 5:23 pm: |
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विनवी कृष्ण 'बावरी, एकदा पावरी वाजविणार?' वदते राधा 'उष्टी मुरली मी ना अधरी धरणार!!' -- शलाका
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Pujarins
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| Thursday, November 09, 2006 - 8:47 pm: |
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वाव! उष्टी मुरली तरी राधे सूर शुध्द असती चंद्रकिरणांनी चुंबलेले अधर न उष्टे असती?
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Daad
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| Friday, November 10, 2006 - 12:06 am: |
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नकोच कौतुक, वेळूचे त्या उहापोह होणार अधरी धर, मग खुळी राधिका वेणूसम घुमणार -- शलाका
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Pujarins
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| Friday, November 10, 2006 - 1:35 am: |
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हा हा राधे वेळूवर का जळशी? निरखून बघ हृदयात जरा वेणूसम तू घुमशी
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R_joshi
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| Friday, November 10, 2006 - 3:14 am: |
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तुम्हा सर्वाना दाद देण्यासाठी माझ्याकडे शब्दच नाहित. एकापेक्षा एक आहात सगळेजण
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R_joshi
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| Friday, November 10, 2006 - 3:19 am: |
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मिलन वेडी राधा मनात कृष्णास वसवी जीव ही जडे वेळुवर तरी अंतर राहे जीवनी... प्रिति
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R_joshi
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| Friday, November 10, 2006 - 3:23 am: |
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मन हे एकरुप चरणी तन माझे नश्वर असे तनात अन मनात ही फक्त तुझाच आभास असे. प्रिति
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R_joshi
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| Friday, November 10, 2006 - 3:33 am: |
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आठवणिवर एक झुळुक आठवणिंच्या गाठोड्यातुन एक आठवण अलगद आली माझ्या नकळत पापण्या ओलावुन गेली... जख्मा ऊरीच्या सावरताना ती मनात सलत राहिली माझ्या नकळत पापण्या ती ओलावुन गेली प्रिति
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Meenu
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| Friday, November 10, 2006 - 3:57 am: |
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आभाळ हे झाकोळले, आसुसली धरणीही .... आला सैतानी तो वारा, गेला घेऊन ढगाला .... यातनांनी विरहाच्या, दुभंगली मग धरा ....
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Daad
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| Sunday, November 12, 2006 - 5:26 pm: |
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व्वा!! - पुजारी, प्रिती, मीनू मस्तच. मीनू, 'यातनांनी विरहाच्या, दुभंगली मग धरा .... ' - छानच!
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Shyamli
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| Tuesday, November 14, 2006 - 12:04 am: |
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बघ सुर्यही सोडुन आला दिशांची हि अंतरे त्यासही कळती झाली मौनांची भाषांतरे श्यामली!!!
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Pujarins
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| Tuesday, November 14, 2006 - 5:25 am: |
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अनागत पालखीचे अदृष्ट भोई अंजनवाटीत फ़िरते चित्रांची राई
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Daad
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| Tuesday, November 14, 2006 - 10:25 pm: |
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श्यामली, मस्तच... कोण मजला सांडले रंग कोण्या रांगोळीचा कोण झुळुकी वाहतो गंध मी कोण्या उदीचा कोण गुणगुणतो मला नाद मी कोण्या गतीचा कोण ओढी श्वासागणी मी मणी का स्मरणीचा? -- शलाका
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Shyamli
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| Tuesday, November 14, 2006 - 10:48 pm: |
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आहा!!! मी मणी का स्मरणीचा...... क्या बात है! सुरेखच...
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R_joshi
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| Wednesday, November 15, 2006 - 4:50 am: |
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शलाका अप्रतिम!!!! मी मणी स्मरणीचा स्मरणात तुझिया राहेन श्वासागणिक तुझिया तुझिच होऊनी राहेन प्रिति
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Daad
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| Thursday, November 16, 2006 - 1:32 am: |
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प्रिती, छान, श्यामली, thanks !! आर्त मी तृष्णा धरेची मीच जल-ओघ अकाळीचा अंगुलीवर गोवर्धन मी मीच स्वामी अंगुलीचा --शलाका
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R_joshi
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| Thursday, November 16, 2006 - 1:49 am: |
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शलाका तुझ्यासाठी आता माझ्याकडे शब्दच नाहित.
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R_joshi
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| Thursday, November 16, 2006 - 1:53 am: |
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आर्त धरेच्या तृष्णेमध्ये माझाच एक ध्यास असे जल-ओघ बनुनी बरसे मी माझी मी न राहतसे. प्रिति
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Shyamli
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| Thursday, November 16, 2006 - 4:31 pm: |
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हे अस कधी कधी फार उपरं उपरं वाटत का कोण जाणे पण आभाळ मनात दाटतं श्यामली!!!
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Daad
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| Thursday, November 16, 2006 - 5:02 pm: |
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ए, प्रीति छान, गं! आपल्याच आभाळात मग हल्लक होऊन उडावं चिमणं होऊन डहाळीवर गुणगुणत झुलावं -- शलाका
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