R_joshi
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| Friday, October 27, 2006 - 4:44 am: |
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तु तिथेच असशील हे मला पक्के ठाऊक होते अजाणतेपणाने का होइना माझे मन तुझ्याकडे राहिले होते. प्रिति
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Bee
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| Friday, October 27, 2006 - 5:21 am: |
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तुझ्या नजरेतला गुपितपणा मला कधी कळलाच नाही पुन्हा वळून बघण्यासाठी काळ पुर्वीचा उरला नाही..
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Mumbhai
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| Saturday, October 28, 2006 - 10:13 am: |
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व्वा ! बी ... एकदम सुंदर ... अजुन येवु देत गुपित माहिती आहे , हे गुपितपणा काय भानगड आहे?
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Daad
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| Sunday, October 29, 2006 - 6:18 pm: |
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थांब इथेच सख्या थोडा काळ थकल्या कायेपाशी पुढल्या वळणावर, मनं होणार आहेत दिसेनाशी -- शलाका
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R_joshi
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| Monday, October 30, 2006 - 4:13 am: |
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सावलीला आवर घालु शकते मनाला सांग कसा आवर घालु सोबतिच्या या वळणावरुन सांग मी कशी मागे फिरु????? प्रिति
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अशी समोर बैस म्हण प्रेम आहे खूप मग लाजून दाखव साठवू दे लाजरे रूप तुषार जोशी, नागपूर
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R_joshi
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| Monday, October 30, 2006 - 7:19 am: |
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प्रेम आहे खुप हे नेहमीच का सांगाव लागत डोळ्यातल गुपित उमजत नाहि म्हणुन कि काय ओठाने बोलाव लागत प्रिति
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तुला दिसत नसले तरी शब्दांची फुले पसर माझ्या प्रेमाचे डोळे घे भरून काढ सारी कसर तुषार जोशी, नागपूर
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तू विचार किती प्रेम आहे? याचा कधी केलास विचार? मी सांगेन इतकी पाउले जेव्हा चालशील वर्षे हजार तुषार जोशी, नागपूर
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Daad
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| Monday, October 30, 2006 - 5:49 pm: |
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प्रेमासाठी सत्-चित्ताचं मंथन हवं मीरेसारखं श्वासागणिक चिंतन हवं -- शलाका
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दाद, सुंदर विचार, सुरेख मांडणी, नादमय शब्द, विचारप्रवर्तक अर्थ. अभिनंदन. तुषार जोशी, नागपूर
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हात माझा हातात घेउन तु माझी होशील का? वादळवाट चालताना तु साथ माझी देशील का?
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Daad
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| Tuesday, October 31, 2006 - 1:38 am: |
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thanks heaps , तुषार हात दिला हातात तुझ्या अन तन उरले तुझ्या सावलीसे वाट वादळी वा हिरवाळी मन निवांत राऊळी दिवलीसे -- शलाका
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R_joshi
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| Tuesday, October 31, 2006 - 5:53 am: |
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शलाका फारच छान. ना मी राधा ना मी मीरा तु अथांग सागर मी एकरुप किनारा. प्रिति
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R_joshi
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| Tuesday, October 31, 2006 - 5:57 am: |
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प्रेम आंधळ असत म्हणुन ते हव असत स्वप्न पालवलेल्या नयनांच ते खर प्रतिक असत प्रिति
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Pujarins
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| Tuesday, October 31, 2006 - 9:13 am: |
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स्वप्न मालवतानाही जगण्यात तिच्या अर्थ होता उदरात तिच्या अंकूरलेला गर्भ होता
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Daad
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| Tuesday, October 31, 2006 - 9:17 pm: |
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प्रिती, सुन्दर!! निरर्थक भेगुळल्या जिण्यात जेव्हा अवचित पालवतो गर्भ, आनंदाश्रू सरसरतात अन अनर्थही पान्हावतो अर्थ -- शलाका
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वाह !!! एकदम खास
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R_joshi
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| Wednesday, November 01, 2006 - 3:11 am: |
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शलाका,अप्रतिम!!! शब्द नसते तर.... नयनांची भाषा कळली असती तुझ्या अन माझ्या ही... मनातली गुपित सर्वाना कळली असती प्रिति
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R_joshi
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| Wednesday, November 01, 2006 - 3:19 am: |
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साद तुला घालिन आवाज माझा ऐकशिल का? निरर्थक या जीवनातील अर्थ तु होशिल का?? प्रिति
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