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Hems
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| Tuesday, October 10, 2006 - 12:55 pm: |
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वा लोपा ! "मनातल्या मनातही न तळलेला वडा " खास आहे !
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Sarang23
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| Tuesday, October 10, 2006 - 11:52 pm: |
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हे हे हे... वैभव एक नंबर आहे!
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Aaftaab
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| Wednesday, October 11, 2006 - 2:57 am: |
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मूळ गाणे: फ़िटे अंधाराचे जाळे इथे http://chandra.astro.indiana.edu/isongs/marathi/gif/75.gif दाटे आतंकाचे जाळे झाला किती सर्वनाश गल्लीबोळातुन वाटे, किती भकास भकास II काम काळे चाले सारे पळवाटा किती सार्या सूर्य दडला ग्रहणी आयुष्याची अमावास्या एक विचित्र कारुण्य, करी उदास उदास II रक्त पिऊन अतृप्त धर्मवेडे अतिरेकी राजकारणी 'मतांध' घालती तयांस पाठी निरपराधा पदरी, नित्य विनाश विनाश II
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Shyamli
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| Wednesday, October 11, 2006 - 3:25 am: |
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कुणा बोलवले घरी तर रताळे उकडले असते.. वैशाली जबरीच जमलय ग...
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Sati
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| Wednesday, October 11, 2006 - 5:23 am: |
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मी मनात सुध्दा माझ्या कधी भजी तळली नाही.. लोपा,मस्तच झालंय विडंबन! खूप आवडलं.
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आफ़ताब ... वैशाली मस्तच जमलियत .... सर्वांचे मनःपूर्वक आभार
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poonam,maudii,kp,hems,vaibhav,shyaamali,sati.... thank you..!!!दिनेशदा, मी तुमच्याकडुन स्फ़ुर्ती घेउन केलेल्या.. सगळ्या रेसिपी, मीच खाते, कारण.. हे diet चे भुत माझ नाही माझ्या नवर्याच आहे त्यावरुनच सुचल..पहिल्या दोन ओळी त्याच्याच आहेत.. ... धन्यवाद विडंबन आवडल्याबद्दल..!!!
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Jayavi
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| Wednesday, October 11, 2006 - 1:28 pm: |
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लोपा, अगं काय मस्त विहार करते आहेस काव्यप्रांतात वैभव, एकदम सही बॉस आफ़ताब, मस्तच रे!
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विजय, लोपा, सद्ध्या एकदम फॉर्मात?
वैभव, तू अशक्य आहेस बाबा!! 
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Himscool
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| Wednesday, October 11, 2006 - 11:55 pm: |
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गुर्जी, क्या बात है!!!
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Devdattag
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| Thursday, October 12, 2006 - 4:18 am: |
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गुड वन रे वैभव.. वैभव सध्या बँगलोरमध्ये आहेस का? वैशाली मस्तच..
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