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Jayavi
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| Thursday, October 12, 2006 - 5:40 am: |
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माधुरी, Thank you मृ, एकदम सही......! सासरी तु जाशी जेव्हा, ऊर भरून येईल वडे, भजी आणी पुर्या आता कोण गं खाईल कोच, सोफे आणि खुर्च्या वाटतील ओस ओस... एकदम झकास मीनू....... अगं इथे का टाकलीस कविता..... मस्तच आहे कल्पना
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मृण, मस्तच जमलंय हे. विडंबनात का नाही टाकलंस?
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मृण्मयी ... सुरेख जमलंय ... बी ... तुझी कविता पण मस्त होती मीनू ... काहीच्या काही ?
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बी, छान कविता आणि आईचा वाढदिवस स्वत:बरोबर साजरा करण्याची कल्पना ही छानच!
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Sarang23
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| Monday, October 16, 2006 - 11:07 am: |
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Bee too good re!!!
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Bee
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| Tuesday, October 17, 2006 - 6:21 am: |
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जनहो तुम्हा सर्वांचे मनःपुर्वक आभार.. :-)
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Jo_s
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| Thursday, October 19, 2006 - 11:29 pm: |
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त्याच्याशी नेह्मीच भांडणारी ती अचानक त्याच्या जवळ आली हात त्याचा हाती घेऊन एकांती त्याला घेऊन गेली हात हाती घेऊन नजरेस नजर भिडवून तिने विकट हास्य केले तेव्हा त्याच्या ध्यानी आले तिचे डोळे होते आलेले
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