Jaaaswand
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| Thursday, September 14, 2006 - 10:03 am: |
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रेशमी श्वास तुझा का हलकेच झाला बोचरा कळ्यांत आत्मा तो का सोडून गेला मोगरा जास्वन्द...
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लोपा, श्यामली, जास्वंद.. छानच चाललय.. 
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Dineshvs
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| Friday, September 15, 2006 - 1:50 am: |
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लोपा, कष्टाला नशीबाची जोड हवी, हि ओळ नाही पटली, बाकि छान आहे.
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दिनेश.. मी पण त्या ओळीपाशी दोन क्षण थांबली पण.. नंतर नशीबाचा एक mark कधी मिळाला नाही हे डोक्यात पक्क असल्याने लिहुन मोकळी झाले... असो ती ओळ पटनारी नाहीच
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लोपा.. छानच..पण हळवी झालियस फ़ार.. कातरवेळेच्या हुरहुरीसारख्या कविता करते आहेस.. .. श्यामली,सुंदर जास्वन्द,खरेच छान..मोगरा आत्मा सोडून गेला कळ्यान्त..वा!!१
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Jaaaswand
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| Friday, September 15, 2006 - 8:45 am: |
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धन्यवाद मित्रांनो एकांत हा थव्यातला तव मिठीत जाऊनी मिटावा अंगांगाने शुष्क कोरडा पाऊसही कधी भिजावा जास्वन्द...
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Shyamli
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| Friday, September 15, 2006 - 8:50 am: |
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हां आता कसं... राजे लीहा लीहा.. हल्ली कुणि लिहीतच नाही इकडे वैशाली,देवा असाल तर या रे लीहा जरा
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Devdattag
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| Friday, September 15, 2006 - 9:05 am: |
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मी एक लिहून कटतो.. स्पर्शिता ओठांस तू गंधाळला शब्दही आयुष्य जगून घेतले अन रेंगाळला अब्दही
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देवा.. मस्तय..!!! (पण अब्द चा अर्थ माहित नाही .) श्यामली तु लिही की कसली वाट बघतीये.. !!!
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Shyamli
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| Friday, September 15, 2006 - 9:40 am: |
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हे हे मी कसली वाट बघणार.. सुचत नाहीये काही एवढच.... अग अब्द म्हणजे ईथे मेघ असं असेल बहुदा
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Safaai
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| Friday, September 15, 2006 - 12:07 pm: |
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V&C वर घालावा वाद शंकांचे करावे शमन काहीच नाही पचले तर रामबाण ठरते वमन
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Lopamudraa
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| Saturday, September 16, 2006 - 1:37 am: |
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v&C ची गम्मत नवी.. शिव्यांची तर थोडी सवयच हवी.. होत नाही जोवर कोन्ग्रेसचे दमन.. तोवर करणार आम्ही गांधी द्वेशाचे वमन..!!!
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Dhund_ravi
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| Saturday, September 16, 2006 - 3:58 am: |
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देवा उत्तर ऐक रे.. गंधाळल्या शब्दांवरी ........ निशब्द ओठ लुब्धही रेंगळला अब्दही अन ............ श्वास मंत्रमुग्धही धुंद रवी.
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Lopamudraa
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| Saturday, September 16, 2006 - 5:25 am: |
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निशब्द झाले ओठ तर. नजर का बोलते..... सार काही कळुन न कळल्या सारखे दाखवते....!!!
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Dhund_ravi
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| Saturday, September 16, 2006 - 6:29 am: |
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ओठातल्या बेहोष विषाचा .......... वर्षाव हा नाही बरा.. श्वासांतुनी पेटेल वणवा .......... सुचवुनी पाहे नजरा.. सडाच पसरतो मग मोहाचा .......... देहात फ़ुलतो मोगरा.. काहीच ना कळण्यामध्येही .......... फ़ायदा असतो ख़रा.. धुंद रवी
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Jayavi
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| Sunday, September 17, 2006 - 4:24 am: |
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क्या बात है....... मस्त सुरु आहे
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Daad
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| Monday, September 18, 2006 - 3:33 am: |
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तू च तू पखरला मोगर्याचा दहीवर तू च तू टीप आता गात्रांतला गहीवर शलाका
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Mitrano, Hi Mazi Kavita Kup Divasa Purvi Me Kavita Keli Hoti, Hi Kavita Tumchya Sathi, Kashi Vatali Yacha Abhiprya Pathva
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कविता सुंअदर आहे तुमची.. तुम्ही कवितेच्या bb वर टाकली तरी चालेल..!!!
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