ती : पडत्यात.... >>>>>>>>>> मिल्याऽऽऽ ! जबराट जुळले आहे
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जबरी. .. .. ..
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Moodi
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| Wednesday, August 16, 2006 - 12:48 pm: |
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मिल्या रे अगदी ताला सूरात गाता येतयं रे. करीरला अन दै. सकाळला पाठव रे.( या वेळी तरी मनावर घ्येच)  
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मिल्या... ROFL! आता एकदा पुण्याला येऊन त्या खड्ड्याभोवती भक्तिभावाने प्रदक्षिणा घालून पाया पडायला पायजे असं मला वाटायला लागलंय!
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Moodi
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| Wednesday, August 16, 2006 - 12:51 pm: |
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फार पूर्वी आवाज या दिवाळी अंकात चित्र आले होते रे मिल्या. असे नवरा बायको जोडीने मोटसायकलवर जातायत अन पाटलीण बाई म्हणतात, धनी गचके बसत्यात, पाटिल म्हणतात अगं यालाच डिस्को म्हनत्यात. 
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Maitreyee
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| Wednesday, August 16, 2006 - 12:58 pm: |
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मिल्या, अप्रतिम! काय रे पण गेल्या वेळच्य अनुभवावरून हे तरी image file करून टाकयचे ना! बघ अजून
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Seema_
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| Wednesday, August 16, 2006 - 1:15 pm: |
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ते " पडत्यात " वाचुन अक्षरश : HHPV
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Paragkan
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| Wednesday, August 16, 2006 - 1:15 pm: |
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hahahahahahaha .... tooooooooo much ! 
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Giriraj
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| Wednesday, August 16, 2006 - 1:30 pm: |
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मिल्या,ज़बरी रे! खूपच खास! आता पुन्हा blog वर नज़र ठेवून बसावे लागेल.. चोरि टाळण्यासाठी
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Dineshvs
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| Wednesday, August 16, 2006 - 1:44 pm: |
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मिल्या, ईतके सुंदर लेखन असे परस्पर लाटले जाईल याची, खरेच धास्ती वाटते. हे खरेच ईमेज फ़ाईल म्हणुन पोस्ट करायला हवे होते.
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तो : नको बाई नको रडु, खड्यामंदी नको पडु ति : इथनं नको तिथनं जाऊ, रस्ता गा वतोय का ते पाहु तो : का? ती : पडत्यात.... <<<<<<<< मिल्या , सहीच as always ! हे विडंबन आणि RP चा खड्डा लेख असे जोडीने पाठवा सकाळ ला . 
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Nakul
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| Wednesday, August 16, 2006 - 2:15 pm: |
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मिल्या - पडत्यात - फारच खल्लास माझे fellow cubitts मगाचपासून मी का हसतोय विचारून जात आहेत. हहपुवा झाली
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हो पडत्यात मस्तच मस्तच जमलय मिल्या
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Prajaktad
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| Wednesday, August 16, 2006 - 2:42 pm: |
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तो : का? ती : पडत्यात.... >>> जबरि जमलय मिल्या! हे विडंबन आणि RP चा खड्डा लेख असे जोडीने पाठवा सकाळ ला . >>> अगदि अगदि!!!
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Saurabh
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| Wednesday, August 16, 2006 - 2:43 pm: |
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हा हा हा हा महान रे मिल्या!! 
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मिल्या.... महान आहेस तू!
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Storvi
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| Wednesday, August 16, 2006 - 8:13 pm: |
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... मिल्या too good गजानन मलाही अगदी असेच वाटु लागले आहे, तरी तसे मी ह्या खड्ड्यांचे दर्शन मागच्या वर्षी घेतलेले होते.. तरी आता ' जळलं मेल लक्षण ' ह्या दृष्टीकोनातून नं पहाता ह्या असल्या काव्यत्मक दृष्टीकोनातुन पहायला हवे 
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Arch
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| Wednesday, August 16, 2006 - 8:28 pm: |
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मस्तच. पण ते पडत्यात नाही समजल. 
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Bee
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| Wednesday, August 16, 2006 - 9:54 pm: |
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मी मुळ गाणे ऐकले नाही त्यामुळे विडंबानाची मजा येणार नाही मला. मलाही ते पडत्यात काहीच कळल नाही. अर्च हमारे साथ है :-)
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अग आर्च , मूळ गाण्यात असं आहे , अरुण सरनाईक : का ? जयश्री गडकर : बघत्यात ! ( म्हणजे ती public मधे romance ला इन्कार करते , कारण लोक ' बघत्यात ' ! 
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