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Gs1
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| Friday, August 18, 2006 - 6:29 am: |
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छान आहे कथा. एकात एक गुंफण आवडली.
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Anilbhai
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| Friday, August 18, 2006 - 7:35 am: |
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लालु अगदी बरोबर. आधारीत कथेचा लेखकाने लिहिलेला शेवट. त्या बाईने सांगितलेला शेवट. आणि ह्या कथेचा शेवट. हे असल काही दिनेशच करु जाणे. 
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सामान्य माणसान्च्या (म्हन्जे आपल्याच की हो) विचारातील झापडबन्द पणा नेमका दर्शविला हे! दिनेशभाव, कथासुत्र आणि शेवट मस्तच! भट्टी झकास जमली हे! 
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Shreeya
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| Friday, August 18, 2006 - 9:44 pm: |
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दिनेशदा, कथा छान आहे! विशेषत्: शेवट धक्का देउन जातो.
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Seema_
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| Tuesday, August 22, 2006 - 1:32 am: |
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कथा आवडली. वेगळी वाटली. reply द्यायला म्हणुन scroll करताना अनिलभाईंची comment वाचली . म्हणुन परत वाचली. मग आणखीच जास्त आवडली कथा. लिहिणारे पण great आणि ते समजणारे पण great
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Chinnu
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| Tuesday, August 22, 2006 - 12:59 pm: |
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कथा सरळ सरळ न सांगता मधुन मधुन उलगडण्याची शैली छान वाटली. शेवट तर खासच आहे.
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छानच लिहिलीय गोष्ट दिनेश.
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