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देवा सही रे! ... 
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Meenu
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| Friday, July 28, 2006 - 1:58 am: |
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देवा छानच रे ...
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Mruda
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| Friday, July 28, 2006 - 2:12 am: |
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मिल्या, देवा.... ए तुम्हा दोघांचा विडंबनांचा संग्रह काढायला हवा.... काय म्हणता मंडळी...?
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Psg
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| Friday, July 28, 2006 - 2:18 am: |
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मिल्या, तू सही आहेस देवा, छान लिहिलयस!
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मिल्या, तू सही आहेस..पूनम,आज साक्षात्कार झाला का तुला हा? देवा,सहीच रे मित्रा
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Jo_s
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| Friday, July 28, 2006 - 4:38 am: |
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मिल्या, देवा सऽऽऽऽ हीऽऽऽऽऽ च सुधीर
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मिल्या, देवा तुस्सी छा गये हो. अमोल
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Abhi_
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| Friday, July 28, 2006 - 7:40 am: |
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देवा ग्रेट
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Giriraj
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| Friday, July 28, 2006 - 10:04 am: |
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देवा आणि मिल्या.. ज़बरी रे.. तूफ़ान मेल अगदी!
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मुळ कविता चुकलेच माझे मी कशाला प्यायलो, चुकलेच माझे वेटरशी भांडलो, चुकलेच माझे भरलेस जरी तू बिल सारे नाही मी लाजलो, चुकलेच माझे सांग ती तुझीच बाटली का होती? मी ढोसली ती, चुकलेच माझे चालताना ओळखीचे बार आले मी जरा लडखडलो, चुकलेच माझे भोवतीचे चेहरे सर्व नेहमीचे होते तरी मीच धुंदलो, चुकलेच माझे पाहीजे चेष्टेस त्यांना बेत माझे मी सांगाया लागलो, चुकलेच माझे. विनायक
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Original kaveeta /cgi-bin/hitguj/show.cgi?tpc=103385&post=419048#POST419048 Aasheesh, hope you dont mind असतेस घरी तु जेन्व्हा जीव घाबरा घाबरा होतो सन्सार वाटतो मिथ्या सन्यास तरी परवडतो नभ फाटून वीज पडावी तैसेच तुझे ओरडणे तव भुणभुण ऐकुन ऐकुन कानाचा पडदा जातो येतात उन्हे दाराशी तु तरीही लोळत पडशी तुजसाठी चहा करताना हाताला चटका बसतो तु सान्ग सखे मज काय मी सान्गू तुझ्या भावाला माझ्याच पगारावरती तो दारु गुटखा खातो झालो मी इतका मोठा ना स्वतन्त्र अजुनी झालो तुजहाती चाबुक आणी बैलासम मी चरफडतो
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विजय लगे रहो. सही है भाय.
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Meenu
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| Saturday, July 29, 2006 - 12:10 am: |
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कांद्या चुक कळली ना आता तरी सुधार चांगली जमलीये रे विनय चांगली जमलीये
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Krishnag
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| Saturday, July 29, 2006 - 3:37 am: |
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मिल्या, भन्नाट रे!! आमचे दाद देण्याचे शब्द कोषच संपवतात तुझी विडंबने!! देवा, झकास!! केपी, मस्तच चालू ठेव!!
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विडंबनासाठी आलो इथे धावत तुझी कविता वाचली,चुकलेच माझे... केप्या,छान जमलीये रे.. विजय, keep it up
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धन्यवाद दोस्तहो.. केपी गुड वन.. विजय छान रे
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Kandapohe
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| Tuesday, August 01, 2006 - 4:06 am: |
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मीनू, किसना, मयूर, देवा धन्स! विजय छान!! 
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Jayavi
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| Wednesday, August 02, 2006 - 4:02 am: |
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विजय मस्त मस्त रे!
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Milya
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| Wednesday, August 16, 2006 - 10:37 am: |
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चाल : एक लाजरा नं साजरा मुखडा तो : एक आडवा नं ऊभा खड्डा चंद्रावानी पडला गं ती : राजा 'करीर' हसतोय कसा की पुणेकर अडला गं || तो : या आकांताचा, तुला इशारा कळला गं ती : खड्डा आडवा येतो मला की पाय माझा मोडला गं तो : नको बाई नको रडु, खड्यामंदी नको पडु ति : इथनं नको तिथनं जाऊ, रस्ता गावतोय का ते पाहु तो : का? ती : पडत्यात.... एक आडवा नं ऊभा खड्डा चंद्रावानी पडला गं राजा करीर हसतोय कसा की पुणेकर अडला गं || ती : ब्रेक सारखा गाडीस सजना नका हो कचकन मारु हाडं खिळखिळी झाली समदी, पाठ लागलिया धरु तो : कशी सांग मी हाकलु गाडी, ट्र्याफ़िक कसला गं ती : खड्डा आडवा येतो मला की पाय माझा मोडला गं || ती : बेजार झाले पाहुन सजना, ट्र्याफ़िकची ही कोंडी कुनी बोंबले पी पी, प्या प्या, शिव्या कुनाच्या तोंडी तो : क्षणात राणी तुझ्या अंगावर चिख्खल उडला गं ती : खड्डा आडवा येतो मला की पाय माझा मोडला गं || ~ मिल्या
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Lalu
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| Wednesday, August 16, 2006 - 10:45 am: |
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का? पडत्यात....
मिल्या, हे पण जाणार इमेल वर!
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