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Maitreyee
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| Thursday, August 10, 2006 - 7:30 am: |
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छानच गं रचना, end बद्दल मला पण जरा psg सारखे वाटले.
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रचना अगदी छान लिहिली आहेस तु ही कथा. फक्त शेवट थोडा आटोपता घेतल्यासारखा वाटाला. I could remember my Kaku, even she was extremely fair and beautiful!!
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Ek_mulagi
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| Thursday, August 10, 2006 - 12:28 pm: |
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छानच जमलीय कथा. शब्दातून चित्रच जिवंत केलय.
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Dineshvs
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| Thursday, August 10, 2006 - 12:54 pm: |
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छान जमलीय कथा.आणि मला वाटतेय न झालेल्या संवादातच मजा आहे.
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Thankyou गोष्ट वाचल्याबद्दल आणि आवर्जून प्रतिक्रिया लिहिल्याबद्दल
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Chandya
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| Friday, August 11, 2006 - 10:29 am: |
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रचना, कथा चांगली जमली आहे. मला वाटते शेवट पण चांगला लिहिलाय. काकु आणि रजनी मधिल शेवटी अधिक संवादाची असलेली गरज रजनीच्या स्वगतातून पुर्ण होते. rajani's self-realization and symbolization of 'gajaraa' is more beautiful than mere dialogues
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रचना सुरेख लिहीलेय गं. ते घर, काका, काकू, राजी आणि शेखर सगळ्या पात्रांसकट डोळ्यांपुढे आले अगदी. पिंपळपान नावाच्या सिरियल मधल्यासारखी जमलीय. एकदम परफेक्ट.
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Rajasee
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| Thursday, August 17, 2006 - 6:59 am: |
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सुंदर कथा, उत्कृष्ट वातावरणनिर्मिती
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Gs1
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| Friday, August 18, 2006 - 2:09 am: |
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रचना, छान लिहिली आहेस कथा. शीर्षकही आवडले
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Itsme
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| Friday, August 18, 2006 - 10:07 am: |
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सुंदर आणि वेगळी कथा
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रचना छान लिहिली आहेस कथा. वेगळी आणि छान
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