|
Milya
| |
| Thursday, July 27, 2006 - 8:29 am: |
| 
|
मूळ idea ची कल्पना दीपस्तंभ कडुन साभार चाल आयुष्यावर बोलु काही आयुष्यभर बोलु काही जरा निरर्थक जरा फ़ालतु बोलु काही असेच दोस्त हो आयुष्यभर बोलु काही उगाच तारे अकलेचे तू रहाच तोडत थकत नाही हा key-board तोवर बोलु काही उगाच कुणी जर हितगुजकरांच्या काढल्या खोड्या तोंडावरतीच त्यांच्या शेरे मारु काही हवेहवेसे post तुला जर हवेच आहे नकोनकोशी चेष्टा नंतर करुच काही मद्या-मद्याची किती काळजी, बघ वासातुन बुधवार आहे उद्याच, नंतर बोलु काही दिवे असुंदे हातांमध्ये काठी म्हणुनी बीबी अंधारा, post ही तिरकस! बोलू काही ~मिल्या
|
Moodi
| |
| Thursday, July 27, 2006 - 8:32 am: |
| 
|
मिल्या उस्फुर्त कवी आहेस बाबा तू. कोपरापासून नमस्कार. 
|
मिल्या, जबरी . मस्त आहे.
|
milyaa.. .. .. .. ..
|
Milya
| |
| Thursday, July 27, 2006 - 9:22 am: |
| 
|
चाल परत आयुष्यावर बोलु काही जरा चविष्ट, जरा खमंग खाऊ काही असेच दोस्त हो आयुष्यभर खाऊ काही उगा बकाणे चिवड्याचे हे भर तोंडात दुखत नाही हे पोट जोवरी खाऊ काही खाणे पाहुन पत्नीनेही रोखले डोळे पाठ फ़िरु दे तिची नंतर खाऊ काही हवेहवेसे गोडधोड मजला हवेच आहे नकोनकोसे आंबट, तिखट खाऊ तेही वजनाची ह्या किती काळजी, उगाच करता खाण्यासाठी जन्म आपुला, खाऊ काही लाडु असुंदेत गाठीशी हे आईच्या हातचे वाट भुकेली, प्रवास हावरट, खाउ काही ~मिल्या
|
Moodi
| |
| Thursday, July 27, 2006 - 9:29 am: |
| 
|
वा मिल्या एकसे बढकर एक नजराणा!! 
|
milya too good can't decide which one is better :D
|
मिल्या जबरीच मिश्रण जमले आहे. पण मला कुठली चांगली विचारले तर मी `आयुष्यभर खाऊ काही` म्हणेन. कारण पहिल्या विडंबनचे संदर्भ फक्त मायबोलीकरांना लागतील.
|
Chinnu
| |
| Thursday, July 27, 2006 - 10:52 pm: |
| 
|
मिल्या खत्रु रे. दोनही छान आहेत.
|
Paragkan
| |
| Thursday, July 27, 2006 - 11:42 pm: |
| 
|
tooooooooooo much re ... donhi mahaaanaan aahet! 
|
वा वा वा.... मिल्या दोन्ही विडंबनं खल्लास!!
|
Devdattag
| |
| Thursday, July 27, 2006 - 11:50 pm: |
| 
|
गुरू तुम तो महान हो..
|
Abhi_
| |
| Friday, July 28, 2006 - 12:03 am: |
| 
|
मिल्या
|
Himscool
| |
| Friday, July 28, 2006 - 12:25 am: |
| 
|
मिल्या.. .. .. .. ....
|
मिल्या,तुसी ग्रेट हो पाजी
|
Meenu
| |
| Friday, July 28, 2006 - 12:42 am: |
| 
|
मिल्या मस्तच रे ..
|
आज सकाळी बसने येतांना एक विडंबन सुचलं.. बस कंडक्टरवर त्यातच काल जाता जाता ही कविता वाचली होती: नामंजूर उठून स्वत: सीट सोडणे नामंजूर अन दुजाची वाट पहाणे नामंजूर मी ठरवावी वेळ बसच्या जाण्याची ठरवल्या वेळेवर निघणे नामंजूर मला कुणाचा धाक नको अन डौल नको मला सरकारी कारकुनांची हूल नको मुहूर्त माझा तोच ज्याक्षणी हो इच्छा वेळ पाहूनी बेल मारणे नामंजूर माझ्याहाती प्रवास तुझा, वाहक मी सुट्ट्यासाठी वाद घालतो, दाहक मी सदाचारावर होवो जगणे चक्काचूर मज लज्जेचे थिटे बहाणे नामंजूर रुसवे फुगवे भांडणतंटे.. लाख वेळा माझ्या नशिबी रोजच आहे हाच मेळा चोख शिवीही इथेच द्यावी अन घ्यावी पोलिसाशी नेणे गार्हाणे नामंजूर धोती लुगडे.. मळके कपडे रोज जरी जागी त्या अंतिम जाण्याची ओढ खरी जगण्यासाठी रोज वहाणे, मज समजे अन रोज हा स्वर्ग वहाणे है मंजूर -देवदत्त
|
मिल्या, देव .. ..
|
Rajkumar
| |
| Friday, July 28, 2006 - 1:40 am: |
| 
|
मिल्या,देवा.. .. .. ..
|
देवा सही रे! ... 
|
|
|