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योग, काय लिहु. शब्दच खुंटले आहेत. अतिशय ह्रदयस्पर्शी चित्र तु समोर उभे केलेस. अमोल
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योग, कथा म्हणण्या ऐवजी मी कादम्बरी अस म्हणेन, छान लिहिली हे! अन तुकड्या तुकड्यात व्यवस्थित उलगडत जाते आहे! 
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Jayavi
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| Wednesday, June 28, 2006 - 8:52 am: |
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योग.........खूपच हृदयस्पर्शी कथा लिहिली आहेस. खूप छान! पण तुझा नावांचा गोंधळ झालाय का रे? सुरुवात तू शिरीष म्हणून केली आहेस आणि लग्न शेखरशी करते असं म्हटलं आहेस......... एकदा परत वाचून बघ ना.
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Ek_mulagi
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| Wednesday, June 28, 2006 - 9:28 am: |
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छान लिहलस योग.. खुपच छान.
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Yog
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| Wednesday, June 28, 2006 - 10:32 am: |
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Jayavi, खरच की.. असो. शेखर नाव कायम ठेवू. 
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Rimzim
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| Wednesday, June 28, 2006 - 10:44 am: |
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YOG toooo good, khupach sundar
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Dineshvs
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| Wednesday, June 28, 2006 - 1:25 pm: |
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योग, वाट बघायला लावलीस, पण छान जमलीय कथा. संपल्याशिवाय प्रतिक्रिया द्यायची नाही, असे ठरवले होते. खुप संयम पाळावा लागला.
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Arch
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| Wednesday, June 28, 2006 - 1:34 pm: |
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थोडासा गोंधळ झाला आहे का नावात? शलाकाच शेखरशी लग्न झाल की शिरीषशी? Anyway! छान आहे.
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योग काय प्रतिक्रिया देऊ तुझ्या कथे बद्दल.. मन हेलावुन गेली ही कथा
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Fulpakhru
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| Wednesday, June 28, 2006 - 4:49 pm: |
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योग फ़ार छान लिहिले आहेस कथा आनि कविता तर फ़ारच छान
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योग.. अप्रतीम... simply great
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योग! अप्रतिम लिहल आहेस!!शिर्षकही आवडले.
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yog, awesome!! felt overwhelmed .. waiting for the next.
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