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Dakshina
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| Wednesday, May 17, 2006 - 8:52 am: |
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विनायक, छोटा प्रयत्न एकदम मस्त आहे... खूप हसले.
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kandaapohe mast chaan jamaley...!!!
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Chinnu
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| Wednesday, May 17, 2006 - 12:54 pm: |
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केप्या सुटला आहेस अगदी! चालु द्या
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Paragkan
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| Wednesday, May 17, 2006 - 11:06 pm: |
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too good re devdatta Good one KP!
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Smi_dod
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| Thursday, May 18, 2006 - 2:51 am: |
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केपी... मान गये उस्ताद... सही... परत एकदा विचारते स्वानुभव का रे? मी सध्या अश्याच फ़ेज मधे आहे
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वैभव, पूनम, लिंब्या, अथक, किसना, मूडी, रुमा, राकू, मिनू, दीप, दक्षिणा, लोपामुद्रा, चिन्नू, PK , स्मिता प्रतिक्रियांबद्दल धन्स! 
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Arch
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| Thursday, May 18, 2006 - 2:40 pm: |
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अरे वा! तूपण का KP ? जमलीय एकदम
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Jo_s
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| Friday, May 19, 2006 - 5:54 am: |
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वैभव, ग्रेट, शब्दच नाहीत वर्णनाला. देवदत्ता लै खास. कांदापोहे, वाटत नाही पहीलाच प्रयत्न आहे अस. मस्त. सुधीर
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अरे इथला माझा msg कुठे गायब झाला? असो, KP मस्त जमल आहे विडंबन
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Dineshvs
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| Friday, May 19, 2006 - 1:37 pm: |
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KP तिला वाचायला देऊ का ?
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Milya
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| Saturday, May 20, 2006 - 1:13 am: |
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देवा : लई खास रे.. मस्तच जमली आहेत. केप्या : u too.... मस्त रे

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Shyamli
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| Saturday, May 20, 2006 - 2:21 am: |
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देवा: दोन्ही धमाल आहेत रे के.पी.:
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आर्च, सुधीर, रचना, मिल्या, दिनेश, शामली धन्स! दिनेश कोण रे ती?
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Cool
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| Saturday, May 20, 2006 - 4:51 am: |
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एक छोटा प्रयत्न. के पी मस्तच आहे हा प्रयत्न
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Pendhya
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| Saturday, May 20, 2006 - 11:19 pm: |
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केप्या, लै खास रे. असलेच छोटे मोठे प्रयत्न, अधुन मधुन करत जा.
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धन्यवाद मिल्या, पीके, श्यामलि, सुधीर.. केपी इथे प्रतिक्रिया द्यायची राहिली बघ..मस्तच जमलंय..
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मूळ गाणं .... वादळवारं सुटलं विडंबन .... जोश्याचं भांडण मिटलं " आईबापाचं वाजलं रं " बोंबलत पोरगं सुटलं रं भांडण घरात, चर्चा गावात जोश्याचं चिडलंय खटलं रं कडकड घरात लक्ष्मी करी भिजला घामात, धडधड उरी खाल्ली बगा त्याच्या धीरानं हाय संगतीला आज कारटं बी न्हाय उल्तान हातात, बसणार डोक्यात नक्कीच आज ह्याचं टकुरं फुटलं काडलंच का माज्या माह्येरचं नाव खानदान तुमचं बगा की राव कमरेत जरा वाकुनिया, भीक मागं जोश्या " करा दया " नवरा माजा, दिलाचा राजा भांडण स्वारीच्या मिठीत मिटलं
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Maudee
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| Monday, May 22, 2006 - 7:27 am: |
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  वैभव.... HHPV superb!! "बोम्बलत पोरग सुटलं रे" --
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Moodi
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| Monday, May 22, 2006 - 7:29 am: |
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बापरे अशक्य मांडणी. वादळाचा गडगडाट जणू. 
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काय रे हे.. वेड...
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