डोळ्यानी डोळ्यांना काय सांगितले एव्हढे...!!! खाणाखुणा रंगात आल्या... ओठांनी केली चुगली... आणि गालावर कळ्या उमलायला लागल्या...!!!
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छान.. अमेय!!! आणि वैभव नेहमिप्रमाणेच..... ... .. ...
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लोपा मजा आली मस्त
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चढत्या रात्रीच्या काळोखावर माझी..... स्वप्न रंगत जातात.. आणि अंधारी रात्र.. ही मग सप्तरंगी होउन जाते...!!!
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thank you... Amey..!!! संध्या वाट पहातेय...!
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खी खी खी खी
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Kandapohe
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| Tuesday, April 25, 2006 - 10:38 pm: |
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झुळुकेवर सोसाट्याचा वारा सुटला आहे. वैभव, अमेय, लोपा, शामली जोरात!
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Shyamli
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| Tuesday, April 25, 2006 - 11:14 pm: |
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वैभव,वैशाली,अमेय.... कुणाकुणाच कौतुक करु.... सही.....
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Shyamli
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| Tuesday, April 25, 2006 - 11:17 pm: |
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जरासे मी मीट्ले डोळे एक वाद्ळ येऊन गेलं उघडुन बघते तो काय बरच काही घडुन गेलं!!! श्यामली!!!
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Devdattag
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| Tuesday, April 25, 2006 - 11:47 pm: |
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अरे काय हे.. काल होते पाहिले मी कोणी बीज होते लावले रातराणी उमलून गेली अन वेड मजला लावले
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Smi_dod
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| Wednesday, April 26, 2006 - 12:00 am: |
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दूर गेलेल्या पांन्थस्थाची वाट बघणारी वेडी...... वाट दिवस सरले,ऋतु सरले वारयाच्या प्रत्येक झुळुके सरशी त्याच्या येण्याने मोहरली ती... पण तो कधी फिरकलाच नाही आता त्याच्यायेण्याची आस संपली आत ती शुष्क... वाट... वाटच राहीली...
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Shyamli
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| Wednesday, April 26, 2006 - 12:05 am: |
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खुप खुप पडलय अंतर सांधु पहाते मी.... मनातल्या वादळाला बांधु पहाते मी!! श्यामली!!!
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Devdattag
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| Wednesday, April 26, 2006 - 12:11 am: |
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वादळाच्या जाणीवेने झंकारली गात्र होती मी मारले जाणीवेला अन उध्वस्त माझी रात्र होती
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Smi_dod
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| Wednesday, April 26, 2006 - 12:16 am: |
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श्यामली,देव मस्त अजुन होउन जाउदे..
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Devdattag
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| Wednesday, April 26, 2006 - 12:43 am: |
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वाटते आम्हांसहि रोज मांडाचेच गान व्हावे कळे ना परी मना का जोगियाचेच ध्यान व्हावे
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Smi_dod
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| Wednesday, April 26, 2006 - 12:56 am: |
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गंधार गायला जावे का कोनास ठावुक गळ्यातुन मात्र जोगिया उमट्तो बहार कधी उमलतच नाही सप्तसुरांशी नाते जुळतच नाही
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Jayavi
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| Wednesday, April 26, 2006 - 1:32 am: |
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काय एकसे एक येताहेत झुळूका....... ह्या सुखद गारव्यानं बाहेरचा उष्मासुद्धा जाणवेनासा झालाय. अशाच सुरु राहू दे झुळूका.
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Ruchita
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| Wednesday, April 26, 2006 - 3:42 am: |
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हरवले सुर कोठे माझे मला कळेना भावना पण व्यक्त कराया शब्द सापडेना
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Jayavi
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| Wednesday, April 26, 2006 - 7:19 am: |
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मिळतील सूर तुजला का शोधिते सुरांना घे तान तू जराशी जुळतील तार पुन्हा
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Devdattag
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| Wednesday, April 26, 2006 - 8:18 am: |
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माझ्या चांदण्याचा आज नूर आहे आगळा माझी रात्र वेगळी माझा चंद्र वेगळा
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