Dilippwr
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| Friday, April 21, 2006 - 8:37 am: |
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रुचिता छान आहे तुझी नाजुका
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Ruchita
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| Saturday, April 22, 2006 - 12:23 am: |
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धन्यवाद दिलीप... अजुन एक... श्वासान्चे जुळले नाते आता तुझे नि माझे तोडु नको कधिहि हे बन्ध रेशमाचे
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Dilippwr
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| Saturday, April 22, 2006 - 1:57 am: |
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गवत आहे भिजलेले दवात आणी मधुन पायवाट तळव्यांना जाणवते थंडाई जणु दुधावरचि म ऊ सायी
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Santu
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| Saturday, April 22, 2006 - 10:52 am: |
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रान मागते हिरवे पणाच्या पलीकडचे काही मातीही बिचकतच देते बिंयांना आभळस्वप्नांची ग्वाही
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santu... vaa..!!! aabhalswapnaanchi gvahi..!!!
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Santu
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| Sunday, April 23, 2006 - 3:04 am: |
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धंन्यवाद लोपा. बालपणी चा उसवलेला सदरा परत घालुन पहिला अंगात. अर्धाच उरलेला लाडु पुरवुन खाल्ला सर्वात
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Smi_dod
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| Sunday, April 23, 2006 - 11:01 pm: |
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पाउस पडणारया पावसापेक्षा मनात थैमान घालणारा पाउस जास्त वाईट बाहेरचा पाउस कोसळतो, पण मनातला मनातच बरसतो त्याने कोसळुन घातलेला कहर कोणाला कळतच नाही पण मनाची मात्र पुरती पडझड करतो. तो कधी हिरवळ आणतच नाही! बहरणारी झाडे, फुललेली फुले कधी या पावसामुळे दिसतच नाही स्मिता
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सुनी सांज येते सुन्या पावलांनी सुन्या पावलांची सुनी साद येई सुनी साद येता पुन्हा आठवांचे सुने विश्व माझे सुने होत जाई
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Ninavi
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| Monday, April 24, 2006 - 1:45 pm: |
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कशी येऊ भेटायला पायवाट नागमोडी जाब पावलागणिक विचारते गर्द झाडी
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सारं जग निद्रिस्त होतं तेव्हा जागं होतं माझं जग उजाडेस्तोवर चालते मनाची खुड्बुड हे उचकुन बघ ते उचकुन बघ
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Ninavi
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| Monday, April 24, 2006 - 1:50 pm: |
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हाय वैभव, बरेच दिवसांनी? जग सारे निजलेले विझू विझू झाले दिवे माझ्या सुन्या अंगणात आठवणींचे काजवे..
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अरे वा निनावि ? आज बरयाच दिवसांनी ? गर्द झाडीत दडली सारया भेटींची कहाणी कधी अंधाराची मिठी कधी प्रकाशाची गाणी
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आठवांच्या काजव्यांचे तेवले होते दिवे कोणता जाळून गेला हे ही मज ना आठवे
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Ninavi
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| Monday, April 24, 2006 - 2:01 pm: |
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' प्रकाशाची गाणी..' वा! सुंदर!!! चंद्र खट्याळ हासतो रान चांदण्यात न्हाते नदी गोंजारते बिंब हळुवार गीत गाते..
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आज चांदव्यास त्याचं न्यून कळूनिया गेलं तुझ्या रुपाचं चांदणं रान उजळून गेलं
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कसे शब्द येत जाती जणू नभीची पाखरे मनी बांधती घरटे मन नभात वावरे
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Ninavi
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| Monday, April 24, 2006 - 2:15 pm: |
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अरे, माझी कुठे गेली? कधी सरावी अवस डोळे निशेचे भरले गाली कळ्यांच्या पहाटे तिचे अश्रू तरारले
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हळूवार बोल सखे जगा नीज येत आहे श्वासांसंगे श्वास बोले कुजबूज होत आहे
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Ninavi
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| Monday, April 24, 2006 - 2:19 pm: |
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माझ्या शब्दांची पाखरे झेप घेती तुझ्याकडे तुझ्या सुरांत तयांना त्यांचे घरटे सापडे
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माझ्या सुरांत अजूनी तुझा सूर राहिलेला जणू भैरवीच्या आधी मालकंस गायिलेला
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