premachya gavi jatana hrudaya bharun yave, manala samajavtana smaran tuze vhave
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\dev2 {}asa karun don kasaat lihi maraathitun!! tujhyaa yaa kavitaa vaachane shixaay.. devanaagareevar click karun ka nahi lihit
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Chinnu
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| Tuesday, April 18, 2006 - 9:36 am: |
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वाह व्वा.. मैफ़िल झकास जमलिये. चालु द्या मित्रांनो!
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वाह वाह वाह... क्या बात है... अजुन बरसु देत झुळका मित्रांनो
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Himscool
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| Thursday, April 20, 2006 - 5:45 am: |
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येणार्याने येत रहावे जाणर्याने जात रहावे मायबोलीवरची झुळूक अशीच बरसत राहू दे
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वैभवा एकदम सहीच शैलेन्द्रा लोपमुद्रा देवदत्त सारेच मस्त लिहिताहेत ही झुळुक अशीच बहरुदेत
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मनातल्या तुझ्या कविचे मौनत्व आज भंगू दे झुळूकेची मैफ़िल पुन्हा आज नव्याने रंगू दे
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Smi_dod
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| Friday, April 21, 2006 - 1:06 am: |
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आठवणीचे सुर कधी आसमन्तात बरसतात कधी अलवार मोरपीस फ़िरवतात.. कधी अनावर करतात.. आणि......... कधी चिम्ब भिजवतात... }
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Smi_dod
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| Friday, April 21, 2006 - 1:22 am: |
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भावनाच्या बाजारात खरे रन्ग कुठे मिळतात? भावनाचा बाजार झाल्यावर भावना आपोआप मिटतात पण..... मिटल्या पापण्या समोर स्वप्न फ़ेर धरतात.. क्रुष्णधवल जग सप्तरन्गी करुन टाकतात...
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Smi_dod
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| Friday, April 21, 2006 - 2:07 am: |
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सीतेची अग्निपरिक्षआ दरवेळेस मीच का द्यायची.. अश्वत्थाम्याची जखम भळभळती..... ती पण मलाच का?.. या का चे उत्तर सापडत नाही अग्निपरिक्ष चुकत नाही
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Ruchita
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| Friday, April 21, 2006 - 2:15 am: |
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हिम तु सान्गितल्या प्रमाणे ज़ुलुक वर माज़्या पन चार ओळी.. तुज़े नि माज़े स्वप्न दोघान्चे अबोल्यातल्या आपुलकीचे अलवारपणे सत्यात उतरले तुज़े नि माज़े घर दोघान्चे कोण सान्गेल का..जुलुक मधला ज़ कसा लिहायचा
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स्मिता आणि रुचिता छान लिहिताय.. रुचिता.. झुळूक मधला झु असा लिही: jhu
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Smi_dod
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| Friday, April 21, 2006 - 2:31 am: |
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धन्यवाद देव,माला सागतोस का कसा लिहायचा?हो आणि अनुस्वार पण
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Smi_dod
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| Friday, April 21, 2006 - 2:31 am: |
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धन्यवाद देव,माला सागतोस का कसा लिहायचा?हो आणि अनुस्वार पण
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स्मिता, मला नीटसं कळलं नाहि तुला काय विचरायचंय अनुस्वार असा लिहि आंबा : aa.nbaa
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Smi_dod
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| Friday, April 21, 2006 - 3:33 am: |
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Are .kshatriya madhala ksha kasa lihaych.and thanks for it
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क्ष असा लिही : kSha
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Smi_dod
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| Friday, April 21, 2006 - 4:30 am: |
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धन्स,देव.खुपदा प्रयत्न करुन मला जमतच नव्हते लिहायला. आणि हो तुझी कविता छान आहे.
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Ruchita
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| Friday, April 21, 2006 - 5:24 am: |
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धन्यवाद देव... झु कसा लिहायचा ते सान्गितल्या बद्दल.. तुझ्य चारोल्य मस्तच
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Ruchita
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| Friday, April 21, 2006 - 5:27 am: |
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मायबोलिवर ओनलाइन सन्वाद करु शकतो का?
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