Ldhule
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| Thursday, March 30, 2006 - 6:22 pm: |
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प्रकाश आणि पाणी... बदकही दिसतायत.... चला तर मंडळी येवुद्यात.
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Jo_s
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| Thursday, March 30, 2006 - 11:29 pm: |
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Ldhule, Chinnu, Lopamudraa, Kandapohe, Shriramb, Neel_ved falgun madhalyaa prtisaadaa saathi dhanyavaad
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Anandg
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| Tuesday, April 04, 2006 - 2:05 pm: |
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वणवणत्या तप्त उन्हात घालुनी फाटका सदरा पाण्याच्या घोटासाठी अनवाणी घालत चकरा रणरणत्या तप्त रणात सोसून पाउले चटके तुडवून चार मैलाचे काटेरी अवघड रस्ते ह्या चार पायर्या उतरुन खाली जाता चतकोर स्वर्ग मग येईल त्याच्या हाता दिसतात कुणाला बदके गोजिरवाणी ही 'वाव' नव्हे भासे सोन्याची खाणी सुचतात कुणाला प्रसन्न प्रकाश्-गाणी ... पण मला भिजविते 'त्याच्या' डोळ्यातिल पाणी..
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Maanus
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| Wednesday, April 05, 2006 - 10:09 am: |
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वा! सुंदर जमलेय रे आनंद.
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Chinnu
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| Wednesday, April 05, 2006 - 6:40 pm: |
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... ... Excellent आनंदा!
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वाह ! आनंदा ... सुंदर रे ... चतकोर स्वर्ग ... जवाब नही दोस्त
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Meenu
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| Thursday, April 06, 2006 - 3:10 am: |
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आनंद छान जमलय रे... .. .. .. ..
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aanandaa chaan !!!.. .. .. .. ..
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फ़ाटके आहे वणवण सारी... भागवण्या आतड्याची तहान..! आयुष्याची खिडकी भासे कीती लहान.., नाही पुस्तक नाही शाळा.. फ़क्त अंधार काळा..! येतो प्रकाश येथे उजळाया जखमा, लक्ष असे एकच " एक थेंब पाणी " ... ठौक नाही आम्हा ती बडबड गाणी.. नाही आशेची सकाळ.. नाही संपत निराश सांयंकाळ.. छोट्याशा जीवनात या फ़क्त रणरणती दुपार, स्वप्नेच माहीत नाहीत तर.. होणार कशी साकार..! पाण्यास या बांध घालुनी केले जसे डबके, पहा इथे आमचे मुक्त बालपण फ़ाटके...!!!
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Champak
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| Thursday, April 06, 2006 - 4:50 am: |
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स्वप्नेच नाहीत भविष्याची तर.. 
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Ninavi
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| Thursday, April 06, 2006 - 9:35 am: |
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लोपा, मस्तच जमल्ये गं!!
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Shyamli
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| Thursday, April 06, 2006 - 9:48 am: |
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वैशाली छान ग!.. .. आनंद मस्त जमलय!!
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लोपा.... खूप आवडली. पहा इथे आमचे मुक्त बालपण फाटके ... वाह ! काय पंच आलाय
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वैशाली, आनंद मस्तच आहेत दोन्ही माझाही एक प्रयत्न का आकाशाची निळाई पाण्यात ह्या उतरलि नाही का बदकांची दोन पिले माझ्याशी रे खेळत नाही का सुर्याचा प्रकाश पाठी का पक्ष्यांचा शब्द मुका जरी समोरी खोल जलाशय का आमुचा माठ सुका भविष्याचे डोळे दोन्ही प्रश्न विचारी रोज नभा प्रशांची त्या उत्तरे द्याया इतिहास का रे आहे उभा
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Shyamli
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| Friday, April 07, 2006 - 5:13 am: |
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क्या बात है देवा!!!
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Puru
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| Friday, April 07, 2006 - 6:35 am: |
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काळाकुट्ट अंधार सोडुन मागे मी चाललोय प्रकाशाकडे चिमुकले हात देतायेत बळ पाऊल उचलतोय भविष्याकडे
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Jo_s
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| Saturday, April 08, 2006 - 2:15 am: |
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गडद काळ्या पटलात एक प्रकाशीत कमान पलीकडे चैतन्य आणि आत जीवन दान सुधीर आजून एक प्रयत्न इतकं स्वत्:त गुंतलो की प्रकाशाशीही वैर झाले अंधाराने व्यापले सारे भोवती, तट उभे केले स्वत:च उभ्या केल्या भोवती काल्पनीक प्रतिमा स्वत:च घातल्या स्वत:लाचकी काल्पनीक सिमा एक उणीव राहीली ज्यातून डोकावले आकाश अंधार आतील पाहून भ्याले थरथरले सावकाश सुधीर
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Shyamli
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| Saturday, April 08, 2006 - 2:24 am: |
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सुधिर सुन्दर कल्पना आहे... छान.. .. ..
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Jo_s
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| Sunday, April 09, 2006 - 4:38 am: |
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शामली प्रतीसादासाठी धन्यवाद सुधीर
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devadatta, sudheer.. .. .. .. .. . chan!!!
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