LOL वैभव! छान जमलीये मुलाखत!
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Ekrasik
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| Friday, April 07, 2006 - 4:43 pm: |
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LOL LOL LOL लैच भारी
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Chinnu
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| Friday, April 07, 2006 - 8:33 pm: |
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वैभवा.. शेवट का रे असा केलास? चारोळीचि definition सहिये! LT तु पण ना! निनावी लिहीच तु आता!
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वैभवा,जबर्या रे भो... full too HHPV ...
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Giriraj
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| Saturday, April 08, 2006 - 4:42 am: |
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काय वैभव,आता इकडॅही लोकांच्या पोटावर पाय द्यायला आलास का?
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Jayavi
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| Saturday, April 08, 2006 - 4:42 am: |
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वैभवा, तुला साष्टांग दंडवत रे !! हसून हसून पुरेवाट झाली नुसती.........एकदम भारी
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वैभवा, एकदम झकास रे भौ.
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Deemdu
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| Monday, April 10, 2006 - 12:38 am: |
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आईशप्पथ हसुन हसुन पुरेवाट रे बाबा वैभवा
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हसावे का लिहावे सुचत नाहीये. 
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Sarang23
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| Monday, April 10, 2006 - 4:09 am: |
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हे हे हे जबरी रे भो! आणि शेवट तर महान आहे!!!
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Milindaa
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| Monday, April 10, 2006 - 4:43 am: |
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छान करमणूक झाली
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Champak
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| Monday, April 10, 2006 - 5:15 am: |
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कालचा लोकसता मधले दोन गुल एक हाफ़ वाच
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वैभव सही लिहीलंय रे
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Chafa
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| Wednesday, April 12, 2006 - 3:28 pm: |
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वैभव, मस्त रे! मजा आली...
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>>>>>तुम्ही लोक ज्यांना गंभीर समजता त्या कित्येक कविता विनोदी असतात खरय वैभव... मस्तच 
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Milya
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| Sunday, April 23, 2006 - 4:45 am: |
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वैभवा सहीच रे आज परत वाचली तुझी मुलाखत.. too good रे.. हसुन हसुन पुरेवाट...  शेवट पण सहीच एकदम वेगळाच.... तुझी प्रतिभा (वासंती नव्हे) कशी चौफ़ेर धावत आहे रे....
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Zoom
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| Sunday, April 23, 2006 - 12:20 pm: |
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वैभव, मस्तच! आता उद्या सगळ्या ऑफिसला हसुन हसुन लोळायला लावतो.
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