वादळ प्यावे, वादळ ल्यावे. धुंद मनाने वादळ गावे. अवघड आता वाट पहाणे, तूच होऊनी वादळ यावे.
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Shyamli
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| | Thursday, March 30, 2006 - 6:10 am: |
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वाटे वादळासम धुंद व्हावे जुनेच गीत नव्याने गावे सावरण्या तरी मला तु ही वादळ होउन यावे श्यामली!!!
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Shyamli
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| | Thursday, March 30, 2006 - 6:31 am: |
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अलगद चैत्र उमलावा पानापानात फुलावा मनालाहि चैत्रासारखा हलकेच मोहोर यावा श्यामली!!!
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Meenu
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| | Thursday, March 30, 2006 - 6:59 am: |
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झुळुकही छान मित्रा, श्यामली मस्त..
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Meenu
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| | Thursday, March 30, 2006 - 7:06 am: |
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तुझे नुसते येणे सुद्धा वादळ असते तुझे मुक रहाणे सुद्धा वादळ असते तुझे नुसते बघणे सुद्धा वादळ असते तुझ्या विरहाची कळ मात्र जीवघेणी असते..
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Meenu
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| | Thursday, March 30, 2006 - 7:30 am: |
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तु येवुनही आज न आल्यासारखा तु असुनही आज नसल्यासारखा तु जवळ असुनही परका.............. श्वास थांबल्यावर सोबत केल्यासारखा
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Jaaaswand
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| | Thursday, March 30, 2006 - 7:31 am: |
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सही रे मित्रांनो.. I mean मैत्रिणिंनो.. व्वा मजा आली.. चालू द्या जोरात नवीन वर्षाबद्दल थोडेसे... हे वर्षा ! एवढीच इच्छा जीर्ण फ़ुलाने कळीत राहावे तुझ्याबद्दल लिहिता लिहिता शाईच्या आधी पान संपावे जास्वन्द...
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Meenu
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| | Thursday, March 30, 2006 - 7:52 am: |
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मी शांता शेळकेनी केलेला गुलजार यांच्या कवितांचा अनुवाद त्रिवेणी वाचला... त्या प्रकारात लिहीण्याचा एक प्रयत्न चु. भु. देणे घेणे... दिवस एक असा उजाडावा ज्यात नसावा तुझ्या आठवांचा मेळावा जसा पुर्ण चंद्र नाही ज्यावर डाग काळा...
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अतीसुन्दर..................... श्यामली,मित्रा, मीनु, जास्वन्द!!!!
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Shyamli
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| | Thursday, March 30, 2006 - 9:52 am: |
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सगळेच मस्त.... शिशीर संपलाय..... बहरावे म्हणतेय मीही नको आता येऊस परत नकोच वेडी आशाही! श्यामली!!!
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Meenu
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| | Thursday, March 30, 2006 - 10:30 am: |
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श्वासभर मोगरा मनभर तू आभाळही भरलय सैरभैर मी.. सैरभैर मी...
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Meenu
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| | Thursday, March 30, 2006 - 10:35 am: |
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तुझ्याशी भांडता भांडता आत्ता निरोप घ्यायची वेळ येईल जातानाही भांडीन तेव्हा मात्र तुझ्याकडे पाठ असेल डोळे भरल्यावर नाहितरी मला काय दिसेल?
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Meenu
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| | Thursday, March 30, 2006 - 10:49 am: |
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कोण हे उसासे सोडतय.. कुणाचे हे शेवटचे श्वास.. अरे नव्हे हा नव्हे भास.. हि तर आपली मैत्री खास
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सहि रे..... जोरात चालु द्या असच...... चौकटचा राजा
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Shyamli
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| | Thursday, March 30, 2006 - 1:25 pm: |
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कुढणं सोडाव मस्त जगावं छाटलेलेच पंख घेउन उंच उंच उडावं श्यामली!!!
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Jo_s
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| | Friday, March 31, 2006 - 1:00 am: |
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पुर्वीचीच पण परत अगदी मनापासून गुढी पाडवा घेउन आला वर्ष नवे हे आपले सुखात जाओ पुर्ण होऊनी स्वप्न मनी जे जपले सुधीर
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वा!! चैत्राची सुरुवात चारोळ्यांच्या वादळाने झाली तर. 
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Niru_kul
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| | Friday, March 31, 2006 - 7:22 am: |
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जेव्हा तुझ्या ओठांवरच्या, मोहक हास्याला बहर येतो; खरं सांगु तेव्हा, तेव्हा सौंदर्याचा कहर होतो. पार्थसारथी......
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Niru_kul
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| | Friday, March 31, 2006 - 7:27 am: |
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तुला सारखं वाटत असेल, मी तुझ्यावर प्रेम का करावं? पण तू आहेचस अशी की, तुझ्यावर कोणीही मरावं. पार्थसारथी....
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Champak
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| | Friday, March 31, 2006 - 8:32 am: |
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डोईवर कळशी कळशीत पाणी अन ती ... अनवाणी!
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Chinnu
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| | Friday, March 31, 2006 - 3:32 pm: |
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.. अन चंप्स ची अवस्था दीनवाणी! ए राग नको मानु रे, गंमत केली. छान आहे तिनोळी, लिहित जा असच!
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Krishnag
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| | Saturday, April 01, 2006 - 2:13 am: |
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शिशिर संपला वसंत आला अजूनी कुरकुरतो पायाखाली जुनाच ओला पाचोळा
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Heartwork
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| | Saturday, April 01, 2006 - 4:37 am: |
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नवे वर्ष, नवी आशा स्वप्नांची चैत्रपालवी वेदनांना माझ्या लाभो संजीवनी नवी
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Heartwork
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| | Saturday, April 01, 2006 - 5:14 am: |
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आभाळाची भाषा आणि पंखांचे भय तुला हवंय स्वप्नांच पाठबळ पंख असतात सर्वांनाच, आकाशात भरारतं बघ मनाचं बळ
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स्वप्नांना नख लावणं, ही त्याची जुनीच सवय; पण माझी स्वप्नंही आहेत वेडी, त्यांना त्याचंच नख हवंय. रश्मिरथी........
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