Shyamli
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| Saturday, March 18, 2006 - 4:41 am: |
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असाच माझा कंटाळा शब्दांमधुन वाहतो कधितरी मग कवीतेच रुप घेतो श्यामली!!!
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Heartwork
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| Saturday, March 18, 2006 - 4:46 am: |
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कविता म्हणजे कविच्या मनात फुललेला प्राजक्त कधि ह्रुदयातल्या जखमेच कागदावर सान्डलेल रक्त
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Heartwork
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| Saturday, March 18, 2006 - 4:58 am: |
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फुलान्प्रमाणेच म्हणे.... काट्यान्चही एक वय असत फुलाना फुलायच काट्याना सलायच असत
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Shyamli
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| Saturday, March 18, 2006 - 4:58 am: |
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कुठेच काही खरतर नसत कमी पण काहितरी हरवतय वाटतय मनोमनी आता ह्याला काय म्हणावे.... अवस्था केविलवाणि सांगेल का मला ह्याच ऊत्तर कुणि? श्यामली!!!
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Heartwork
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| Saturday, March 18, 2006 - 5:05 am: |
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प्रश्न नवे तुझे पण जुनेच ते सन्दर्भ जुन्या प्रश्नान्च्या पोटि पुन्हा नवे गर्भ
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Shyamli
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| Saturday, March 18, 2006 - 5:14 am: |
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या वळणावर भरभरुन सुखावले काहितरीच.... शोधताना उगाचच दुखावले श्यामली!!!
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Heartwork
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| Saturday, March 18, 2006 - 5:19 am: |
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त्या वळणावर, धडपडलो मीही जरासा पण घाव खोल झाले नाही वाईट वाटले याचे की.... धड पडताही आले नाही
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Heartwork
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| Saturday, March 18, 2006 - 5:35 am: |
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काहितरि सान्गायला तुला ओठ माझे आतुर असतात समोर येतेस तेन्व्हा मात्र शब्द तुला फितूर असतात
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Heartwork
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| Saturday, March 18, 2006 - 5:46 am: |
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येणार म्हणालि ती म्हणुन मि दाराला तोरण बान्धली तोरणावर कविता करुन ती दारातुनच निघुन गेली!!
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Shyamli
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| Saturday, March 18, 2006 - 5:47 am: |
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कशीयेस राणी...? म्हणलास ना... की मोहरुन जाते... पुढचे सगळे शब्द तुझे विसरुन जाते.... श्यामली!!!
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Gandhar
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| Saturday, March 18, 2006 - 5:51 am: |
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शब्द जरी फितुर जाहले भाव मनीचे तुला समजले थरथरत्या तव अधरांवरले दवबिंदू मी अलगद टिपले
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Shyamli
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| Saturday, March 18, 2006 - 5:51 am: |
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अरे आले होते की मी... तुला नाही का दिसले? दारावर बांधलेल्या तोरणापाशीच खरच मन थबकले.... श्यामली!!! वा गंधार.... आज कशि वाट चुकली?
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Heartwork
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| Saturday, March 18, 2006 - 5:52 am: |
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तुझा विसरण्याचा छन्द आणि मला आठवण्याचा काल पाहिलेलि स्वप्न तुझ्याकडे पाठवण्याचा
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Gandhar
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| Saturday, March 18, 2006 - 5:58 am: |
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तू जरी नाकारलंस तरी मला कसं विसरशील तिरस्कार करण्यासाठी तरी तू मला आठवशील... श्यामले वाट ओळखीचीच आहे पण बर्याच काळानंतर येतोय या वाटेवर
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Shyamli
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| Saturday, March 18, 2006 - 6:01 am: |
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तुझ्या सगळ्या आठवणिंची मी केलिये आता पाठवण... एकदा तरी खर सांग.... तुला येत नाही का रे.... माझी कधीच आठवण? श्यामली!!!
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Gandhar
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| Saturday, March 18, 2006 - 6:17 am: |
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मनात माझ्या तूच तरी विसरण्याचा उगा बहाणा धुळभरल्या वाटेवरी शोधतो तव पाऊलखुणा
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Gandhar
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| Saturday, March 18, 2006 - 6:20 am: |
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सखे तुला विसरण्याचा खूप खूप प्रयत्न करतो विसरण्याच्या बहाण्याने पुन्हा पुन्हा तुलाच आठवतो
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Shyamli
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| Saturday, March 18, 2006 - 6:24 am: |
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hmm... छान चाललय....येऊ दे अजुन...
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आठवणी तुझ्या नव्याने जुनीच पाउलवाट फुलवतात.. पुसट्शा त्या खाणाखुणा तुझ्या सोबतिचा गंध देतात
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किती ही लपवलस तु तरी आठवनी तुला छळतातच ना ओठावर हासु असले तरीही नकळत डोळे भरतातच ना
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बेधुन्द आठवनी मनात जाग्या समोर प्राजक्त फुलताना.... केवढी माझी धांदल उडालीये.. त्या गंधा मागे धावताना..
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Jo_s
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| Sunday, March 19, 2006 - 3:36 am: |
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मनात कसले काहूर नयनांत अश्रू भरले नजरेस नजर ही मिळता ते अबोल बोल मज कळले
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समजावून समजण्याइतके मन शहाणे असते का? मन शहाणे असते तर, तुला विसरले नसते का?
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तु दिलेल्या रंगांनी स्वप्ने रंगवुन घेतली काही क्षणातच.... बोचरी रात्र इन्द्रधनु होउन गेली......!!!
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भासले सारेच माझे... पण काहीच माझे नव्हते पानावरी ओठंगुनी क्षणिक चुकार दंव ते.
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