Jo_s
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| Monday, March 13, 2006 - 1:55 am: |
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जयावी, त्या वर्ड फाईलचा फ़ॉन्ट कुठला आहे? 
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तुझी आठवण कधी झुळुक हळवी, पानोपानी शहारते तुझी आठवण कधी झोन्बते वादळी, शुन्यत्व मोहरते
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तुझ्या आठवणीत माझ्या सोबत रात्र ही वेडी झालेली कोणास ठाउक केव्हाची पहाट दारातच थांबलेली
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Jayavi
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| Monday, March 13, 2006 - 11:30 pm: |
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अरे तो नुतन फ़ॉंट आहे. ती कविता मी खास श्यामलीसाठी टाकली होती निल्या एकदम सही ! वेडी रात्र एकदम कातिल !
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Jo_s
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| Tuesday, March 14, 2006 - 1:21 am: |
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आता घेरतायत आठवणींची भुतं रिकाम्या मनी कधी, होतं, असं होतं सुधीर
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Sarivina
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| Tuesday, March 14, 2006 - 4:32 am: |
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तुझी भेट रंगांची पखरण तुझी भेट फुलांची उधळण भेटी सरल्या तरिही मला अजुन सावरते तुझीच आठवण
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Sarivina
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| Tuesday, March 14, 2006 - 4:35 am: |
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भरून आलयं आभाळ अन दाटुन आल्या आठवणी सांग तरी कशी करू अश्रूंची पाठवणी
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तुझी आठवण झाली नी गायला लागले मी, चांदण्या वेचत उन्हात, सार्या जगाला सहायला लागले मी!!!
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Sarivina
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| Tuesday, March 14, 2006 - 4:50 am: |
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तप्त ऊन असो की धुंवाधार पाऊस अंगावर झेलण्याची तेंव्हा तुला-मला हौस
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Sarivina
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| Tuesday, March 14, 2006 - 4:55 am: |
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रणरणत्या ऊन्हाचे की पायाखालच्या काट्याकुट्यांचे कशाकशाचे भान नव्हते हरखून चालत होतो दोघं ते दिवसंच तसे होते
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Sarivina
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| Tuesday, March 14, 2006 - 5:14 am: |
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वर्ष सरली की रंग फिकट होतात तशी बहुतेक नातीही बदलतात तुझ्या-माझ्या भेटी मात्र अजुनही तेच सप्तरंग उधळतात
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अनेकदा मनात साचून येते आपल्या आठवणींची रास कित्येक चकवे करून देतात अपूर्ण अश्या मोक्षाचे भास जास्वन्द...
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Sarivina
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| Tuesday, March 14, 2006 - 5:42 am: |
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कोपर्यात एका टेबलावर असेच समोरासमोर बसलो होतो आधी समोरच्याने विचारावं म्हणून वाट पहात होतो
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Jo_s
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| Tuesday, March 14, 2006 - 5:49 am: |
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मनात काही साचून राहीलं की दिवा स्वप्नं दिसू लागतात येता जाता भास होतात अन भासच जणू श्वास होतात
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Sarivina
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| Tuesday, March 14, 2006 - 5:54 am: |
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आजही तेंच होटेल अन तेंच टेबल आहे निरोप आधी कोणी घ्यायचा तोच प्रश्न मनात आहे
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Sarivina
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| Tuesday, March 14, 2006 - 6:12 am: |
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कुठे होतास? कसा होतास? मनात राहीले सारे प्रश्नं अलगद उतरली डोळ्यांत सारी सारी जुनी स्वप्नं
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sari jhuluk vahatee thev, chhaan chalaley!!!
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Sarivina
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| Tuesday, March 14, 2006 - 6:34 am: |
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thanks vaishali...... aaj kharach masta vatatay asa bharpur liheelyavar.....
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Shyamli
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| Tuesday, March 14, 2006 - 6:39 am: |
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वा सरी..... सुधिर.... वैशाली... छान......
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Jaaaswand
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| Tuesday, March 14, 2006 - 10:32 am: |
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काय हे.. किती दिवसांनी असलं कधी बोललोच नाही दाटून तिच्या भेटींतली रिक्तता भरून कधी पावलोच नाही जास्वन्द..
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Ninavi
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| Tuesday, March 14, 2006 - 10:45 am: |
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सतत सोबत करतात मला तुझे ध्यास, तुझे भास तू नसताना तुझ्या लयीत उसासणारे माझे श्वास..
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Jaaaswand
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| Tuesday, March 14, 2006 - 11:04 am: |
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उसासणारे श्वास...वाह निनावी सगळं मळभ दूर झालं पुन्हा उन्हं खुलून आली नभाच्या कवेत येताच वीज वेडी लाजून गेली जास्वन्द...
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Shyamli
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| Tuesday, March 14, 2006 - 11:19 am: |
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जमतय खुलुन यायला पुन्हा सख्या सवे तुझ्या... ऊगवतीये पौर्णीमा आज मनी माझ्या श्यामली!!!
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Athak
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| Tuesday, March 14, 2006 - 11:24 am: |
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सगळेच छान लिहीताहेत , झुळुक अशीच वाहु द्या
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Jaaaswand
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| Tuesday, March 14, 2006 - 11:26 am: |
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पडून राहतात आलेली पत्रं भुलवतो मजकुराचा तपशील पत्ताच नाही असे आम्ही हो आम्हां प्रेषकांचे काय हशील जास्वन्द...
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