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Ninavi
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| Saturday, February 11, 2006 - 3:00 pm: |
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मिल्या, सहीच! नेहेमीप्रमाणेच!! पण माफ करणं मला जमत नाही. त्यामुळे लवकर नवीन विडंबन लिहायची शिक्षा फर्मावत आहे! ( नवीन विषयाची फर्माईश तुमच्या सौ. नी केली आहेच!) 
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Giriraj
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| Sunday, February 12, 2006 - 9:48 am: |
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भाई,नुकतंच लागलेल दिसतय! मिल्या, default वाह!
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Rajkumar
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| Sunday, February 12, 2006 - 11:38 pm: |
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अनिलभाई,मिल्या... सहीच!! .. .. ..
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Milya
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| Monday, February 13, 2006 - 1:09 am: |
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दाद दिल्याबद्दल मनापासुन धन्यवाद
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Pama
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| Thursday, February 16, 2006 - 4:22 pm: |
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दुपारच्या वेळेस फेरीवले बिचारे पोटापाण्यासाठी फिरत असतात, पण काय करणार ते आले कि जाम वैताग येतो.. मूळ गाण: jhiNee jhiNee vaaje beena टिनी टिनी वाजे बेल, नको रे, अनुदिन चीज नवीन कधी गजरा पिन साबण घ्या ना कधी अंब्यांचा असे बहाणा शेव चणा कधी लाडू विकण्या, शरणागत मी दीन कधी पडदा, कधी साडी बटवा आणि कधी पाण्याचा मटका असा झोपेचा तोडून लचका येतो फिरत कुठून पुन्हा कधी या घरास आला बघशिल मग तू माझा पारा आला फिरुनि तो वाजविणारा, हिसका मग दावीन
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Ninavi
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| Thursday, February 16, 2006 - 4:47 pm: |
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पमा ... ... ...
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Pendhya
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| Thursday, February 16, 2006 - 4:58 pm: |
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मस्त गं, पमा. आला फिरुनि तो वाजविणारा, हिसका मग दावीन >> विक्रेत्याला, तुझा धसका घेण्यासाठी एव्हढे शब्द पुरेसे ठरावेत.
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Maitreyee
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| Thursday, February 16, 2006 - 5:08 pm: |
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पमा सहीच 
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Gandhar
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| Thursday, February 16, 2006 - 6:31 pm: |
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Psg
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| Friday, February 17, 2006 - 2:35 am: |
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हीहीही, छानच आहे पमा
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Anilbhai
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| Friday, February 17, 2006 - 6:06 pm: |
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पमा सुंदर विडम्बन 
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Kandapohe
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| Friday, February 17, 2006 - 10:01 pm: |
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पमा सही. मस्त लिहीले आहेस
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Sarang23
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| Friday, February 17, 2006 - 10:37 pm: |
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Ha Ha Ha Pama sahi!
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Shyamli
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| Friday, February 17, 2006 - 11:16 pm: |
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.. .. .. ..
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Aavli
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| Saturday, February 18, 2006 - 2:01 am: |
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layee bharee aahe bara ka !
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Pama, ... ... ...
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Dineshvs
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| Saturday, February 18, 2006 - 10:40 am: |
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पमा छान, आता हि कविता सोसायट्यांच्या गेटवर लावायला हवीय.
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Pha
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| Tuesday, February 21, 2006 - 6:58 am: |
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मूळ गाणं : कुणाच्या खांद्यावर कुणाचे ओझे माझिया खांद्यावर पिशव्यांचे ओझे पिशव्यांचे ओझेऽ कशासाठी घरी होतो सुट्टी असून?? पाय गेले शॉपिंगसाठी पायपीट करून थकतात गात्रे सारी उन्हात चालून तरी नव्या दुकानी ' ही ' शिरे उत्साहाने! माझिया खांद्यावरऽ ढीग कपड्यांचे पडती पुढ्यात येऊन " टेक्स्चर - पॅटर्न " फंड्यांनी मी जातो गोंधळून मुरडे ' ही ' नाक परी ट्रायल घेऊन तरी नवे स्टॉक दावी सेल्समन हासरे! माझिया खांद्यावरऽ अंती एक पीस निवडून होई घासाघिशी तिकडच्या पाचशेवर इकडून निम्म्याची उतारी " चारशे.. बरं; तीनशे तरी " त्याची मिनतवारी हेका धरुनि आपुला स्वारी बाहेर पडे! माझिया खांद्यावरऽ
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Psg
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| Tuesday, February 21, 2006 - 7:08 am: |
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अगदी अगदी!! फ: छान! चांगल निरिक्षण आहे हो
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Shyamli
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| Tuesday, February 21, 2006 - 7:11 am: |
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फ.. .. .. ..   
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फ,  .... .... ....
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Moodi
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| Tuesday, February 21, 2006 - 7:50 am: |
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फ!!! लै ब्येस जमले रे भो, मिल्याच्या पंक्तीत बसला तू पण.  
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Badbadi
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| Tuesday, February 21, 2006 - 8:16 am: |
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फ.. मस्त च जमलंय.. मिल्या, आता याला उत्तर येउ देत
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Kandapohe
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| Tuesday, February 21, 2006 - 8:42 am: |
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मिल्या, आता याला उत्तर येउ देत >> हे काय सवाल जवाब आहे का बडे! ऐ SSS का करुन उत्तर द्यायला फ 
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Mrunmayi
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| Tuesday, February 21, 2006 - 9:36 am: |
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pha sahich aahe vidamban..
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