|
Manuswini
| |
| Saturday, February 11, 2006 - 12:14 am: |
|
|
पमा मस्तह अती सुंदर
|
Moodi
| |
| Saturday, February 11, 2006 - 9:09 am: |
|
|
अजीत,पमा, पेंढ्या झक्कास रे.
|
Pama
| |
| Friday, February 17, 2006 - 9:47 am: |
|
|
धन्यवाद मंडळी.. चला, आता नवीन चित्र टाका कुणीतरी. इथे काहीच हलचाल नाहीया किती दिवसांत.
|
Mavla
| |
| Tuesday, February 21, 2006 - 2:44 pm: |
|
|
मरण्या आधि मरण येथे बेहोशी चा होश येथे हाच दोष.. हाच दोष.. बाकि सारे निर्दोष... प्राक्तन मीच, मीच रावण सितेला त्यक्तनारा, हा रामही मीच हाच दोष.. हाच दोष.. बाकि सारे निर्दोष... 'गीता' मीच, मीच सिता' कुमारिका पण मी कुमारी माता हाच दोष.. हाच दोष.. बाकि सारे निर्दोष... विश्व मीच, मीच पोकळी माझ्याच अंगणी, माझाच बळी हाच दोष.. हाच दोष.. बाकि सारे निर्दोष... बाकि सारे निर्दोष... मावळा
|
Meenu
| |
| Wednesday, February 22, 2006 - 2:56 am: |
|
|
निर्दोष प्रत्येकाच्या मनात एक न्यायलय वसलयं आरोपीलाच तीथे न्यायाधिश केलय शक्य आहे इथे निर्दोष मुक्त होणं गुन्हा करुन वर पुन्हा उजळ माथ्यानं मिरवणं मनातलं न्यायालय जर चोख काम करु लागेल बाहेरच्या न्यायालयांना खरं सांगते टाळं लागेल
|
Heartwork
| |
| Saturday, February 25, 2006 - 3:29 am: |
|
|
निर्दोष किती निरपराध्यान्च्या माना, सोडवल्या मी गळ्फासातुन केसानि तु गळा कापला, मीपण सुटलो नाहि त्यातुन तुझ्याच दरबारि न्यायाचि, निष्ठुर तु न्यायमुर्ती वेडी प्रिति केली म्हणुन, आरोपिच्या पिन्जर्यात मी खोटी ठरलि साक्ष खरिही, गुलमोहराची, बकुळ्फुलान्चि तुलाच ओळख पटली नाहि, तुच घेतलेल्या शपथान्चि शिक्षा तु ठोठवण्याआधिच, जीवनयात्रि हा सम्पला धरणिकम्प झाला तरिहि पण, हात तुझा ना जरा कम्पला
|
|
|