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गजानन, मस्त ! ही गोष्ट लहानपणी ऐकली होती, खूप दिवसांनंतर परत वाचायला मजा वाटली ! झकासराव, ही गोष्ट आपल्याला मराठीच्या पुस्तकात होती ?
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Nalini
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| Friday, June 29, 2007 - 10:16 am: |
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खातीचे गाल आणि न्हातीचे बाल लपत नाहीत: ( कोणतेही) सत्य लपुन रहात नाही.
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Cool
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| Friday, June 29, 2007 - 12:03 pm: |
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झकासराव, ही गोष्ट आपल्याला मराठीच्या पुस्तकात होती ? >> हो मला आठवते ही गोष्ट, चौथीच्या पुस्तकात होती वाटतं
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Cool
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| Friday, June 29, 2007 - 12:18 pm: |
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'बाजारात तुरी अन भट भटणीला मारी' >> याचा अर्थ तोच आहे, एखादी गोष्ट आपल्याला मिळायच्या आत त्यावर केलेले भांडण. माझ्या माहीतीत याच म्हणीचे पुढचे वाक्य आहे त्यावरुन अर्थ स्पष्ट होतो. "बाजारात तुरी अन भट भटणीला मारी, घट्ट करती का पातळ करती .. " >>> अरे मला वाटायचे की पंक्ती प्रपंच म्हणजे जेवायला बसलेल्या सर्वांचे झाल्यावर सर्वांनी उठायचे अशी प्रथा. यावरुनच आठवलेली एक गम्मत. शाळेत शब्दाचे अर्थ विचारत असतांना आमच्या वर्गातील एका मुलीने 'भूतदया' या शब्दाचा अर्थ 'भूत' आहेत असे मानुन त्यांच्यावर दया करणे असा सांगितला होता . त्याच तासाला एका मुलाने 'साहित्य' या शब्दाचा अर्थ 'कंपासपेटीतील सामान' असा सांगितला होता
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Dakshina
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| Friday, July 06, 2007 - 7:24 am: |
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रिकामा सुतार, बायकोचे कुल्ले ताशी...
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Farend
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| Friday, July 06, 2007 - 5:10 pm: |
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Dakshina LOL! रिकामा न्हावी भिंतीला तुंबड्या लावी माहिती होते. तिथपर्यंत ठीक होते. हा प्रकार अचाटच आहे
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Dakshina
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| Wednesday, July 11, 2007 - 6:28 am: |
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आपल्या एका मायबोलिकराने मला ही म्हण मोबाईलवर मेसेज केली होती... आणि त्यात त्याने लिहीलं होतं की 'मी हसून फुटलो" मेसेज वाचून मी पण फुटले.....  
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घरी नाही नेणतं अन् म्हातारं रांगतं!
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Runi
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| Monday, October 01, 2007 - 3:33 pm: |
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घरी नाही नेणतं अन् म्हातारं रांगतं!>>> याचा अर्थ काय? मला नाही माहित ही म्हण.
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Hkumar
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| Tuesday, October 02, 2007 - 4:46 am: |
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आधुनिक म्हण: माहेरी गेलेली स्त्री आणि 'बार' मध्ये गेलेला पुरुष घरी लवकर परतत नाहीत.
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Bavlat
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| Tuesday, October 02, 2007 - 1:14 pm: |
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मला वाटत ती म्हण अशी अहे. माहेरी गेलेला पुरुष (घर जावई) आणी बार मधे गेलेली स्त्री कधीच परतत नाहीत. 
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Hkumar
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| Wednesday, October 03, 2007 - 5:58 am: |
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.....कारण त्यांच्यासाठी परतीच्या वाटा बंद झालेल्या असतात!
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