Xaolaa^-kÊ dIpkaÊ maaMiDlao tulaa saÜinayaacao taT GaDivalaa jaDivalaa caMdnaacaa paT... Gardar p`kaXaanao BarI kazÜkaz darI AalaolyaacaI saÜpI k$ payavaaT... GaatlaI tanao tulaa rMgaaMcaI raMgaÜLI ip%yaanao roiKlyaa gaÜD BaivaYyaacyaa AÜLI... GaaiXalaI sama maIhI kolaI tolavaat d(at ha kalaivalaa ijarosaaL Baat... gaa ro raGaUÊ gaa gaM maOnao baaLacyaa yaa AÜLI mauKI tumacyaahI GaalaU duQaatlaI pÜLI... kutU ka} ica} maa} yaa ro saaro yaa ro saaMDlaolaI iXato gaÜD ]calaUnaI Gyaa ro... gauNaI maaJaa baaL ksaa caTmaTa jaovaI AayauYyaato qaÜr krI maayaoÊ kuladovaI... AnaamavaIra mhNajao AnaamavaIra ijaqao jaahlaa tuJaa ijavanaaMt hI kaÆ
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tIL AaiNa tanduL yaa ga dI maaDgauLkrancyaa pustkamaQyao baÜrkranvar ek saundr laoK Aaho. %yaamaQao kaih
ihind kivata Aahot baÜrkrancyaa. kÜiNa pÜsT kÉ Xakola kayaÆ
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Sherloc
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| Wednesday, June 01, 2005 - 3:28 am: |
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EaI. gajaanana dosaa maI Aaplaa A%yaMt AaBaarI Aaho. hI kvaIta vaacatanaa jaÜ puna :p`%yayaacaa AanaMd imaLtÜ tÜ vaNa-naatIt Aaho. tsaM p`%yaokca maaNasaacyaa manaat ek lahana maulaM dDuna basalaolaM AsatM. AgaadI KrM saaMgaayacaM tr
yaa vayaatsauwa prt ekda Aanao Aaplyaa hatanao Barvaavao AXaI itva` cCa hI kvaIta vaacatanaa hÜto. XabdaMcao saamaqya- KrcaM AfaT Aaho. hÜyaÊ Anaamaivara mhNajao tIca kvaIta. punaXca Qanyavaad ²
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Xaolaa^-kÊ AnaamavaIra ijaqao jaahlaa tuJaa jaIvanaaMt hI kusaumaaga`jaaMcaI kivata yaoqao phaÁ AnaamavaIra AaiNa Qanyavaad ksalao hÜ %yaat²
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Sherloc
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| Thursday, June 02, 2005 - 3:17 am: |
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Hey c'mon AnaamavaIra kusaumaaga`jaaMcaI naahI. kahItrI gaflat hÜto Aaho inaiXcat
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gaLNyaaAaQaI gaLNyaaAaQaI saLsaLunaI hI rMga ]QaLtI panao Aaga laagalyaagat raLaMcaa faga KoLtI ranao jvaaLaMcao jaNauM laaoL JaaoMbatI laala pIt naairMgaI pNaa-caa vaNaao-%sava Gaotao ]saLyaa caMgaIBaMgaI ]nho saaMjacaI sarIsarIMnaI %yaat AaoittI saaonao JaDtI panao doiKla haotI AmaRt Barlao daoNao JaDNyaacaI caahUla laagata Asaa mahao%sava %yaaMcaa saNa gaNaunaI ipiTtat caaOGaDa yaoNaa-yaa marNaacaa JaaDo ranao ]Mca ]DivatI pNaa-tUna ptaka XaaKaXaaKatUna TaiktI sauKsaMtaoYaXalaaka mhNatI Aata ApNa- hao} Jaolau ihmasaumavaYaa- ho saamaaoro sahYa- AamhI navyaa ijaNyaacyaa spXaa- maIih jaahlaao ]%sauk %yaaMsah ApNa- haoNyaasaazI raomaaMcaatuina JaDtI vaYao- rMgat paoTIpazI AnauraigaNaI
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Surthorat
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| Wednesday, January 25, 2006 - 6:11 pm: |
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प्रीतीचा तिळगुळ मदिय आली प्रियतमा सखी दारी भासवियले तिज मग्न मी विचारी शयनखुर्चीवर ग्रंथ करी एक सोंग उठवियले घेउनी सुरेख तिळगुळाचे हातात सान ताट मदिय दृष्टीची पाहतसे वाट वदन सस्मित ताठली भ्रूधनू की मोहिनी ऐसी दृष्टीशरा फेकी बाण ऐसे परि मोहिती मनाला ललित दृश्या या जीव लुब्ध झाला ''तिळगुळ ध्या गोड मधुर बोला'' मधुर वचने बोलली हे सुशीला ''या तिळाहुनि तव गाली तीळ छान शर्करेने तव अधर ये भरून वदनरंध्री फुलतात रम्य काटे असा तिळगुळ तव गोड मना वाटे.''
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Iravati
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| Wednesday, March 01, 2006 - 12:59 pm: |
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संधीप्रकाशात अजुन जो सोने तो माझी लोचने मिटो यावी हि कविता संदीप खरे च्या आयुष्यावर बोलु काही या कार्यक्रमात सलील कुलकर्णी खुप छान गातो. हि कविता एखाद्या अल्बम मध्ये समविष्ट केलेली आहे का? कुणाला माहित असल्यास info द्यावी
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Kshipra
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| Thursday, March 02, 2006 - 4:56 am: |
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ira, pula aaNi sunitabaaini borakaraaMchaa eka programme karayache tyaata hee kavita aahe. pulanee mhaTalelee aahe. aanandyaatraa kee kaay ase naav aahe. malaa nakki aathavat nahi. paN kavita khup surekha aahe. jamalyaasa purNa dein.
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Iravati
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| Saturday, March 04, 2006 - 2:05 pm: |
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dhanyavaad kshipra.... Jamlyas mp3 de. Yach BB var archives madhye aahe hi kavita....
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Surthorat
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| Wednesday, March 15, 2006 - 2:47 pm: |
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प्रणयमुग्धेस नादात गुंगसी जे शब्दात सांग बाले आषाढाच्या घने का त्वन्नेत्र भारलेले? होसी रसार्द्र केवी झुकतेस द्राक्षवेली? ओठात वेदनेची मदिराहि साठलेली! पायास अंतराचा का भार साहवेना? का बोल घोळलेला ओठातुनी सुटेना? का सावलीत तूझ्या बघतेस बावरून? भलतीच लाज मेली वद गे सखे त्यजून घे शेत हेलकावे तव का विळी न चाले? नादात गुंगसी जे शब्दात सांग बले
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Surthorat
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| Wednesday, March 15, 2006 - 2:51 pm: |
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इतुक्या लौकर येइं न मरणा इतुक्या लौकर येइं न मरणा मज अनुभवुं दे या सुखक्षणां! फिरुन पहाटे डोंगरमाथा घ्यावे काजू येतिल हाता किंवा पोफळी शिंपुनि दमतां मज आलिंगू दे रविकिरणां वझर्यावरती न्हाउनि पाणी गावी मी कुणबाऊ गाणी पोवलींतुनी पेज पिऊनी झोपुनी जरा सुखवुं दे मना निसर्ग गो-वत्सांशि रमावें दिवसभरी श्रम करित रहावें मासळीचा सेवित स्वाद दुणा पडत्या किंवा सायंकाळी गुंतावे भावांच्या जाळी वेणुस्वरांची काढीत आळी मज उकलूं दे आंतील खुणा रेंदेराचे ऐकत गान भानहीन मज मोडुनि मान चुडताच्या शेजेवर पडुन भोगुं दे मूक निस्तब्धपणा रात्री समईशी वाचावी ज्ञानोबाची अमृत-ओवी कविता-स्नेहें वात जळावी उजळीत मनाचा द्वैतपणा कुळागराची गर्द साउली त्यांतच माझी खोप सानुली निद्रेविण स्वप्नांच्या ओळी रेखीत भोगु दे सरळपणा फूलपांखरे अनंत माझी बनुनी, मी सेवावी ताजीं हृत्सुमनें आनंदामाजीं नाचवीत पांथांच्या नयनां
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येइं सखी येइं सखी हसतमुखी हळुहळु वर जाऊं अणुअणुंनी पार्थिवता गाळित जग पाहूं नील गहन शांत गगन विरल त्यांत चंद्रकिरण जणुं अथांग आर्द्र नयन ही शराब प्राशुनि बेफाम धुंद होऊं पर्णांचे मृदु कंपन लहरींचे आंदोलन कलिकांचे तरल श्वसन नसानसांत खेळवीत विकलगात्र होऊं शीतलतेचे अंजन वायुचे रूप धरून स्फूर्तीचे पंख करुन यां अनंत विस्तारी रंगुनी तरंगू शीतल करूं चंद्रासन या अथांग यमुनेंतुन संगम-उत्सव करून कणाकणात हिम भरीत शांतकाय होऊं
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Arun
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| Wednesday, March 29, 2006 - 10:19 am: |
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चढवू गगनी निशाण, आमुचे चढवू गगनी निशाण कोटि मुखांनी गर्जू जय जय स्वतंत्र हिंदुस्थान निशाण अमुचे मनःशांतीचे, समतेचे अन् विश्वशांतीचे स्वस्तिचिन्ह हे युगायुगांचे ऋषिमुखतेजमहान मुठ न सोडू जरी तुटला कर, गाऊ फासही जरी आवळला तर ठेवू निर्भय ताठ मान ही झाले जरी शिरकाण साहू शस्त्रास्त्रांचा पाऊस, आम्ही प्रल्हादाचे वारस सत्य विदारक आणू भूवर दुभंगूनी पाषाण विराटशक्ती आम्ही मानव, वाण अमुचे दलितोद्धारण मनवू बळीचा किरिट उद्धट ठेवुनी पादत्राण हिमालयासम अमुचा नेता, अजातशत्रू आत्मविजेता नामे त्याच्या मृत्युंजय हे चढवू वरती निशाण
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Iravati
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| Monday, May 29, 2006 - 2:39 pm: |
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जलद लोचनी खिरतो सुर्मा संध्येची सरते अस्ताई पारावारांतिल पंखांना अंत-यांतली झाली घाई उरलासुरला प्रकाश आता पळतो आहे होऊनी पारा अंधाराची पहिली तारा निघेल धुंदावून अभिसारा भिऊं नको ग.... नाही कांही सांगायचे, मागायाचें दिवसभ-याचे दुरावलेपण आहे केवळ लंघायाचे
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Iravati
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| Monday, May 29, 2006 - 2:41 pm: |
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पर्जन्याची पिसें सांडली पिसावलेल्या उन्हात तुझे नि माझे लग्न लागले विसावलेल्या मनांत क्षणांत झुलल्या मंगलाक्षता पानां-सुमना-तृणांत रत्नांच्या गहिवरांत न कळे कोण हरवले कुणांत
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Iravati
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| Monday, May 29, 2006 - 2:44 pm: |
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झडीनंतरच्या मोतिया उन्हात संगमरवरी शिखर जसे तुझ्या त्या कोवळ्या शीतळ स्मिताने शेवटी अंतर झाले ग तसे गडाड ढगांचें कडाड विजांचे भांडण एकदा हवेच होते मनांचा सामना झडून प्राणांचे मीलनदेखील नवेच होते भांडण झाल्याने तुझ्या ग रुपाचे चांदणे ओल्याने मखरी आले आंत ते झुलता माझेही मानस मोतिया उन्हींचे शिखर झाले
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Iravati
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| Monday, May 29, 2006 - 2:45 pm: |
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चांदणकाळी आंदणवेळ दल दल फुलते रंजनवेल आनंदाला फुटून फांद्या निळे पाखरु घेते झेल चांदणकाळी सलते सुख धूप कसे दरवळते दु:ख चंद्रमणीसा शब्द निथळूनी डुले घेऊनी छंद अचूक चांदणकाळी झुलतो पूल थडगे देखिल बनते फूल शिळेशिळेवर स्वप्नकळेचे रत्नोपम उमटे पाऊल चांदणकाळी आंदणवेळ जग सगळे टिप-यांचा खेळ सृष्टीवरती करिते वृष्टी स्वरपुष्पांची अमृतवेल
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Iravati
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| Monday, May 29, 2006 - 2:47 pm: |
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उत्तररात्र ओलांडून खुळे चांदणे घरात आले गाढ झोपेत मूल मूल दवामधले फूल झाले आई त्यांची हिरवी वेल पान्पान आळसलेली स्वप्नपत्री खुडत असताना मोतीचूर पावसात न्हाली सोनदिवीचे पाचही डोळे जागून झाले मंद मंद गार झोंबरा वारा आला घरात ओतीत धुंद गंध मीच तेव्हढा जागा झालो गगनभर पांगली वीज अकस्मात नागीण कशी प्राण चाटून गेली वीज अंधारातल्या पारिमीता संपून उजळ झाली शुद्ध शिळ्यापाक्या सुखाखाली उपासपोटी दिसला बुद्ध खिडकीमधून उडत आले बोलले कोवळे पिंपळपान " पावस-पाण्यात पिकली पुनव चल लवकर वेचून आण " वेडे पाय चालू लगले तोच जूनी आठवण झाली उंबरठ्यापाशी कपाळभर दरदरून हूम आली तसाच फिरुन वारें कसा जागवले मी सारे घर त्याच्या संगे वेचली पुनव चूर होऊन रात्रभर रोज चांदणे घरांत येते फुलतो संसार पिंपळ कसा कवडसासा अजून बुद्ध बसून आहे उघडून पसा
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Bee
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| Tuesday, May 30, 2006 - 11:03 am: |
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इरावती, देरसे ही सही पण तू शेवटी ती कविता लिहिली त्याबद्दल आभारी आहे.. मस्त आहे ती चाफ़्याच्या झाडाची कविता.
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