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Bapucha
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| Thursday, August 09, 2007 - 12:14 pm: |
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जय योगिश्वर दत्त दयाळ तुज एक जगमा प्रतिपाळ
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Bapucha
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| Thursday, August 16, 2007 - 9:23 am: |
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अत्र्यनसुया करी निमित्त प्रगट्यो जगकारण निश्चित्|| ब्रम्हा हरिहरनो अवतार शरणागतनो तारणहार्|| अन्तर्यामि सतचितसुख बहार सद्गुरु द्विभुज सुमुख्|| झोळी अन्नपुर्णा करमाह्य शान्ति कमन्डल कर सोहाय्|| क्याय चतुर्भुज षडभुज सार अनन्तबाहु तु निर्धार्||
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Bapucha
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| Friday, August 17, 2007 - 11:15 am: |
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आव्यो शरणे बाळ अजाण उठ दिगंबर चाल्या प्राण्| सुणी अर्जुण केरो साद रिझ्यो पुर्वे तु साक्शात्|| दिधी रिद्धि सिद्धि अपार अंते मुक्ति महापद सार्|| किधो आजे केम विलम्ब तुजविन मुजने ना आलम्ब्|| विष्णुशर्म द्विज तार्यो एम जम्यो श्राद्ध्मां देखि प्रेम्|| जम्भदैत्यथी त्रास्या देव किधि म्हेर ते त्यां ततखेव्|| विस्तारी माया दितिसुत इन्द्र करे हणाब्यो तुर्त्|| एवी लीला क इ क इ सर्व किधी वर्णवे को ते शर्व्|| दोड्यो आयु सुतने काम किधो एने ते निष्काम्|| बोध्या यदुने परशुराम साध्यदेव प्रल्हाद अकाम्|| एवी तारी क्रुपा अगाध केम सुने ना मारो साद्|| दोड अंत ना देख अनंत मा कर अधवच शिशुनो अंत्|| जोइ द्विज स्त्री केरो स्नेह थयो पुत्र तु निसन्देह्|| स्मर्तुगामि कलिकाळ क्रुपाळ तार्यो धोबि छेक गमार्|| पेट पिडथी तार्यो विप्र ब्राम्हण शेठ उगार्यो क्शिप्र|| करे केम ना मारो व्हार जो आणि गम एकज वार्|| शुष्क काष्ठणे आंण्या पत्र थयो केम उदासिन अत्र|| जर्जर वन्ध्या केरां स्वप्न कर्या सफळ ते सुतना क्रुत्स्ण|| करि दुर ब्राम्हणनो कोढ किधा पुरण एना कोड्|| वन्ध्या भैंस दुझवी देव हर्यु दारिद्र्य ते ततखेव्|| झालर खायि रिझयो एम दिधो सुवर्ण घट सप्रेम्|| ब्राम्हण स्त्रिणो म्रुत भरतार किधो संजीवन ते निर्धार्|| पिशाच पिडा किधी दुर विप्रपुत्र उठाड्यो शुर्|| हरि विप्र मज अंत्यज हाथ रक्श्यो भक्ति त्रिविक्रम तात्|| निमेष मात्रे तंतुक एक प होच्याडो श्री शैल देख्|| एकि साथे आठ स्वरूप धरि देव बहुरूप अरूप्||
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Bapucha
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| Monday, August 20, 2007 - 9:10 am: |
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संतोष्या निज भक्त सुजात आपि परचाओ साक्षात्|| यवनराजनि टाळी पीड जातपातनि तने न चीड्|| रामक्रुष्णरुपे ते एम किधि लिलाओ कई तेम्|| तार्या पत्थर गणिका व्याध पशुपंखिपण तुजने साध्|| अधम ओधारण तारु नाम गात सरे न शा शा काम्|| आधि व्याधि उपाधि सर्व टळे स्मरणमात्रथी शर्व्|| मुठ चोट ना लागे जाण पामे नर स्मरणे निर्वाण्|| डाकण शाकण भेंसासुर भुत पिशाचो जंद असुर्|| नासे मुठी दईने तुर्त दत्त धुन सांभाळता मुर्त्|| करी धूप गाये जे एम दत्तबावनि आ सप्रेम्|| सुधरे तेणा बन्ने लोक रहे न तेने क्यांये शोक्|| दासि सिद्धि तेनि थाय दुःख दारिद्र्य तेना जाय||
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Bapucha
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| Monday, August 20, 2007 - 9:24 am: |
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बावन गुरुवारे नित नेम करे पाठ बावन सप्रेम्|| यथावकाशे नित्य नियम तेणे कधि ना दंडे यम|| अनेक रुपे एज अभंग भजता नडे न माया रंग|| सहस्त्र नामे नामि एक दत्त दिगंबर असंग छेक्|| वंदु तुजने वारंवार वेद श्वास तारा निर्धार्|| थाके वर्णवतां ज्यां शेष कोण रांक हुं बहुक्रुत वेष्|| अनुभव त्रुप्तिनो उद्गार सुणि हंशे ते खाशे मार्|| तपसि तत्वमसि ए देव बोलो जय जय श्री गुरुदेव|| अवधुत चिंतन श्री गुरुदेव दत्त|| हरि ओम्||
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Bapucha
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| Monday, August 20, 2007 - 9:54 am: |
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जय योगिश्वर दत्त दयाळ तुज एक जगमा प्रतिपाळ||1|| अत्र्यनसुया करी निमित्त प्रगट्यो जगकारण निश्चित्||2|| ब्रम्हा हरिहरनो अवतार शरणागतनो तारणहार्||3|| अन्तर्यामि सतचितसुख बहार सद्गुरु द्विभुज सुमुख्||4|| झोळी अन्नपुर्णा करमाह्य शान्ति कमन्डल कर सोहाय्||5|| क्याय चतुर्भुज षडभुज सार अनन्तबाहु तु निर्धार्||6|| आव्यो शरणे बाळ अजाण उठ दिगंबर चाल्या प्राण्||7|| सुणी अर्जुण केरो साद रिझ्यो पुर्वे तु साक्शात्||8|| दिधी रिद्धि सिद्धि अपार अंते मुक्ति महापद सार्||9|| किधो आजे केम विलम्ब तुजविन मुजने ना आलम्ब्||10|| विष्णुशर्म द्विज तार्यो एम जम्यो श्राद्ध्मां देखि प्रेम्||11|| जम्भदैत्यथी त्रास्या देव किधि म्हेर ते त्यां ततखेव्||12|| विस्तारी माया दितिसुत इन्द्र करे हणाब्यो तुर्त्||13|| एवी लीला क इ क इ सर्व किधी वर्णवे को ते शर्व्||14|| दोड्यो आयु सुतने काम किधो एने ते निष्काम्||15|| बोध्या यदुने परशुराम साध्यदेव प्रल्हाद अकाम्||16|| एवी तारी क्रुपा अगाध केम सुने ना मारो साद्||17|| दोड अंत ना देख अनंत मा कर अधवच शिशुनो अंत्||18|| जोइ द्विज स्त्री केरो स्नेह थयो पुत्र तु निसन्देह्||19|| स्मर्तुगामि कलिकाळ क्रुपाळ तार्यो धोबि छेक गमार्||20|| पेट पिडथी तार्यो विप्र ब्राम्हण शेठ उगार्यो क्शिप्र||21|| करे केम ना मारो व्हार जो आणि गम एकज वार्||22|| शुष्क काष्ठणे आंण्या पत्र थयो केम उदासिन अत्र||23|| जर्जर वन्ध्या केरां स्वप्न कर्या सफळ ते सुतना क्रुत्स्ण||24|| करि दुर ब्राम्हणनो कोढ किधा पुरण एना कोड्||25|| वन्ध्या भैंस दुझवी देव हर्यु दारिद्र्य ते ततखेव्||26|| झालर खायि रिझयो एम दिधो सुवर्ण घट सप्रेम्||27|| ब्राम्हण स्त्रिणो म्रुत भरतार किधो संजीवन ते निर्धार्||28|| पिशाच पिडा किधी दुर विप्रपुत्र उठाड्यो शुर्||29|| हरि विप्र मज अंत्यज हाथ रक्श्यो भक्ति त्रिविक्रम तात्||30|| निमेष मात्रे तंतुक एक प होच्याडो श्री शैल देख्||31|| एकि साथे आठ स्वरूप धरि देव बहुरूप अरूप्||32|| संतोष्या निज भक्त सुजात आपि परचाओ साक्षात्||33|| यवनराजनि टाळी पीड जातपातनि तने न चीड्||34|| रामक्रुष्णरुपे ते एम किधि लिलाओ कई तेम्||35|| तार्या पत्थर गणिका व्याध पशुपंखिपण तुजने साध्||36|| अधम ओधारण तारु नाम गात सरे न शा शा काम्||37|| आधि व्याधि उपाधि सर्व टळे स्मरणमात्रथी शर्व्||38|| मुठ चोट ना लागे जाण पामे नर स्मरणे निर्वाण्||39|| डाकण शाकण भेंसासुर भुत पिशाचो जंद असुर्||40|| नासे मुठी दईने तुर्त दत्त धुन सांभाळता मुर्त्||41|| करी धूप गाये जे एम दत्तबावनि आ सप्रेम्||42|| सुधरे तेणा बन्ने लोक रहे न तेने क्यांये शोक्||43|| दासि सिद्धि तेनि थाय दुःख दारिद्र्य तेना जाय||44|| बावन गुरुवारे नित नेम करे पाठ बावन सप्रेम्||45|| यथावकाशे नित्य नियम तेणे कधि ना दंडे यम||46|| अनेक रुपे एज अभंग भजता नडे न माया रंग||47|| सहस्त्र नामे नामि एक दत्त दिगंबर असंग छेक्||48|| वंदु तुजने वारंवार वेद श्वास तारा निर्धार्||49|| थाके वर्णवतां ज्यां शेष कोण रांक हुं बहुक्रुत वेष्||50|| अनुभव त्रुप्तिनो उद्गार सुणि हंशे ते खाशे मार्||51|| तपसि तत्वमसि ए देव बोलो जय जय श्री गुरुदेव||52|| अवधुत चिंतन श्री गुरुदेव दत्त|| हरि ओम्||
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चोखंदळ ग्राहक |
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महाराष्ट्र धर्म वाढवावा |
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हितगुज गणेशोत्सव २००६ |
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